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________________ माताका पेट तोडकर जन्म लेनेवाले और मांस भक्षणका उपदेश करनेवाले बुद्धने, अकारण करुणा रत्नाकर,सर्वज्ञ, अनि परमात्मा देवके शासनसे एकान्त विपरीत ही सृष्टि प्रकट की. है, यह बात पहिले संक्षेपसे विदित हो चुकी है । अतः परस्पर विरोधी धर्मोंसे दुःखी होते हुए महाजनोंको परम सत्य सनातन श्री वीतरागधर्मका शरण लेकर अपना दुःख मिटाना चाहिए। .... : ___सब दर्शनोंसे विलक्षण, परम शुद्ध, जैनशासन, सांसारिक वासनारूपी सांपनीको वश करनेमें एक जांगुली मंत्र है। परस्पर किसी प्रकार विरोध नहीं होनेसे, तथा सर्वज्ञ कथित होनेसे, एवं दया, दान, शील, तप, भावना, शम, दम, परोपकार आदि पवित्र उपदेशरूप अमृतकी मुसलधारा वर्षानसे, और विद्वान् मुमुक्षु महात्माओंके आदर मार्गमें आनेसे, जैनधर्म, परम सत्य-प्रामाणिक सिछ होता है। संसारमें सैंकडो धर्म प्रचलित होने पर भी परम सुखको देनेवाला एक अनादि धर्म अवश्य होना चाहिए, और उसीका नाम है-चीतरागधर्म । जैनधर्मकी पवित्रता और प्राचीनताके विषयों जैनोंके मन्तव्यही मजबूत सबूत हैं; क्योंकि जिस दर्शनके सिद्धान्त, बिलकुल प्रामाणिक हैं, वह दर्शन, पवित्र और प्राचीन सिद्ध होता है । जैनागम, जब अनेकान्तवादका प्रतिपादन कर रहा है, तब बौद्ध और वैदिक दर्शनोंने, एकान्तवादको खडा किया । सब दुनियाँ, एकान्तवादमें गुम हो गई है, तब एक ही जैनशासनने सब चीजोंके उपर स्याद्वादनयका सिक्का बैठा दिया। स्याद्वादही जैनदर्शनका अटल लक्षण है। " स्याघाद क्या चीज है ? " इस जिज्ञासाको अच्छी तरह शान्त करनेकी ताकत इस लघु लेखमें नहीं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034803
Book TitleDharmshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherGulabchand Lallubhai Shah
Publication Year1915
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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