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शिक्षा. उसके उपदेशमें प्रामाणिकता किस जगहसे आसकती है ?। जिसके भावनेत्रमें तिमिर फैला हो, वही, बौद्धदर्शनको निर्दोष देख सकता है, मगर थोडाभी निपुण विचार करनेवाले महाशय, उक्त दलीलोंसे बौद्धदर्शनको असर्वज्ञमूल,और अप्रामाणिक समझते हैं।
हमें निष्पक्षपातसे यह कहना जरूरी मालूम पडता है कि अन्यदर्शनोंमें-दूसरे धर्मोमें जो अच्छी अच्छी बातें दिखाई देती हैं, वे जैनदर्शन-अर्हत्सवचन रूपी महासागरसे विविध नय रूप तरंग लहरीके वेगसे उडी हुई बन्दियां हैं।
एक एक नयको सावधारण रीतिसे पकड कर निकले हुए बौद्ध और वैदिक दर्शनोंके परस्पर भयंकर कलह होनेके समयमें, निरवधारण-सापेक्ष रीतिसे तमाम नयोंको मान देनेवाले महाराजा श्री जैनदर्शनने बीचमें आके स्याद्वाद-सिंहनादको फूंक कर, अपने ओर विजय कमलाको खींच ली । और दिशोदिशि अपना निष्कटंक, अचल साम्राज्यका सिक्का बैठाया ।।
इससे पाठक वर्ग जान गये होंगे कि जैनधर्म, बौद्धधर्म की शाखा नहीं । कहां गांगा तैली ? और कहां राजा भोज ? कहां बौद्ध धर्म ? और कहां जैन धर्म ? । एक दो बातें मिलनेसे यदि जैन और बौद्ध दर्शनको एक कहा जाय, तो कह दीजिये ! वैदिक दर्शन और बौद्धदर्शनको भी एक, और सुन लीजिये ! उ. नमें मिलती हुई एक सरीखी संख्याध बातें१ न्याय सूत्रका प्रणेता गौतममुनि है, और बौद्ध दर्शनका भी
प्रणेता गौतममुनि है। २ न्याय दर्शमें ज्ञान-शब्द वगैरहको क्षणिक माना है । और
बौद्धदर्शनमें तो वस्तु मात्र क्षणिक है ही है।
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