________________
धर्मशिक्षा. होती हैं, यदि यह न माना जाय, और यह कहा जाय कि पैदा होती हुई वस्तुका यह स्वभाव ही है-'थोडे समयतक ठहरना;' तब तो वस्तु मात्र नित्य ही बनेंगी-किसी वस्तुका नाश न होगा, क्यों कि मुद्गर-कुठार वगैरह के प्रहार होने परभी थोडे समय तक ठहरना' इस स्वभाववाली वस्तुमात्र उस वक्त कैसे नष्ट हो सकती हैं ?, निदान, प्रहार होते वक्त भी वस्तुमें उक्त स्वभाव मौजूद ही है । इसके उत्तरमें इतना ही कहना काफी है, कि क्षण मात्र रहनेके स्वभावको लेकर ही पैदा होती हुई वस्तु, दूसरे क्षणमें कैसे नष्ट हो सकेगी ?, क्या दूसरे क्षणमें, वस्तुका क्षणमात्र रहनेका स्वभाव कौएं खा जायँगे ? । देखिये ! प्राज्ञ वाचक ! कैसा माकूल उत्तर ?।
वास्तवमें तो उत्पाद--विनाश और धौव्य, इन तीन स्वभावोंसे युक्त ही वस्तु वस्तु कहलाती है, यानी वस्तुमात्रमें ये तीन स्वभाव सदातन रहा करते हैं, विना इनके वस्तुत्व ही नहीं बन सकता, यह बात अगाडी जा के खोल देंगे । वस ! इस सिद्धान्तकी छत्रछायाका यही प्रभाव है कि वस्तु मात्र, नये नये पायोंसे उत्पन्न, और पूर्व पूर्व पर्यायोंके विनाश होनेसे विनष्ट हुआ करती हैं । और मृत्तिका-सुवर्ण वगैरह अन्वयि द्रव्यसे, ध्रुव-सदातन भी कहलाती हैं ।
ज्ञानाद्वैत वादि बौद्धलोग, जगत् में ज्ञानहीको देखते है, इनके विचारसे, सिवाय ज्ञान और कोई चीज नहीं है । इसके जवाबमें यही पूछते हैं, कि पृथ्वी, पानी, आग, वगैरह प्रत्यक्ष देखाती हुई चीजें क्यों नहीं हैं ?-किस सबूतसे बाहरकी चोजोंका निषेध करते हों ! ; कहोगे ! प्रत्यक्षसे, तबतो अपनी छरी से अपना शिर काटा ऐसा हुआ; क्यों ? , क्यों क्या ?, प्रत्यक्षही
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com