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धर्मशिक्षा. वाले नहीं थे, नहीं तो वेदमंत्रोंमें विकराल हिंसाका बयान क्यों होता?
देख लीजिये ! फिर भी वेदमन्त्र" एष छागपुरो वाजिना पुष्णो भागो नीयते विश्वदेव्यः” । (ऋग्वेद संहिता)
यहाँसे लेकर दश पंक्ति तक ऋग्वेद पढनेसे वेदकारका दया हृदय, स्फुट मालूम पड़ जाता है ।
उक्त मंत्रका सारांश यह है
घोडेके पास यह बकरा, पूषा और दूसरे देवोंके लिये लाये हैं । इस घोडेका जो कुछ मांस, मखियां खायँगी, और जो कुछ घोडेके मारने वालेके नखोंमें रह जायगा, ये सब घोडे के साथ स्वर्गमें जायेंगे । इस घोडेके पेटमेंसे जो कुछ कच्चा मांस निकलेगा, वह स्वच्छ करके अच्छी तरह पकाना । घोडेके शरीरमें ३४ पांसलियां हैं, इनमें छुरा अच्छी तरह फेर फेरके, कोई हिस्सा बि. गडने न पावे, अंग अलग अलग निकालिये ।
इस प्रकार, ऐतरेय-तैतरेय--शतपथ ब्राह्मण वगैरह बहुत स्थलों में पशु-हत्या करनेका घोर वयान किया है । यहाँ कितना लिखा जाय; चारों वेदोंमें, भूरि भूरि, पशुवध करनेके मन्त्रोंको देखते हुए भी जिन महाशयोंका हृदय, वेदोंके ऊपर वैसेका वैसा मोहित बना रहता है, और वेदोंकी प्रामाणिकताके विश्वाससे फूला नहीं समाता, उसमें उनका कोई अपराध नहीं है, अपराध केवल दुराग्रहका है, जो कि अच्छे अच्छे विचारवंत लोगोंके भी गलेको पकड बैठा है।
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