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धर्मशिक्षा.
___ "नोदनाहि नूतं भवन्तं नविष्यंत सूक्ष्म व्यवहितं विप्रकृष्टमेवंजातीयकमर्थमवगमयति, नान्यत् किंचने-न्द्रियम्" ॥
अर्थ-नोदना (श्रुति) भूतकालिक, वर्तमानकालिक,भविष्यकालिक, सूक्ष्म, और व्यवधानमें आये हुवे, तथा दूर रहे हुवे, सभी पदाथोंका प्रकाश करती हैं। यह काम इन्द्रियोंसे नहीं होता हैं।
पाठकगण? ऐसी अद्भुत नोदना, तीनकालके पदार्थोंका निवेदन किसी पुरुषको अवश्य करेगी, अन्यथा उक्त वाक्य अप्रामाणिक क्यों न होगा? जब नोदना किसीभी पुरुषको त्रैकालिक चीजोंकों निवेदन करती है. तो वहीं सर्वज्ञता सिद्ध हुई। अहा ? "घट कुट्यां प्रभातम् " यह न्याय कैसा चरितार्थ हो गया ? क्योंकि सर्वज्ञ सिद्धि प्रसंगसे डरते हुए मीमांसकको वेदकी अपौरुषेयता मानने परभी सर्वज्ञ सिद्धि सिद्धांतका सत्कार किये विदुन छुटकारा नहीं हुवा।
प्रिय पाठक ? मीमांसक यदि मीमांसक होता, तो ऐसे भ्रम जालमें नहीं फंसता । किन्तु प्राज्ञेतर लोग अपना मतलब निकालनेकी चतुराई नहीं जानते हैं। कैसे जानें ? अज्ञानता और चतुराई परस्पर विरुद्ध है। जिन धर्मोंका प्रवाह असर्वज्ञोंसे चला है, उन धर्मोके अधिकारि लोगोंको चतुराई कहांसे प्राप्त हो सकती है? चतुराई [विज्ञान का समुद्र सर्वज्ञदेवही होते हैं। उन्हींका उपदेश सर्व प्रकारेण निर्मल होता है। वहां लेशमात्र भी दोष नहीं ठहरता, अतः उनके उपदेशको सादर पीनेवाले लोगोंको चतुराई [विज्ञान] सुलभ है, किन्तु मांसभक्षणका उपदेश करनेवाले जैमिनीको किस जगहसे चतुराई मिलसकती है ? । याग धर्मका
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