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धर्मशिक्षा. तिर्यग्गति, और नरकगति इन, चार गतियोंमें पर्यटन करता है। अब देखिये ! मरे हुए, पितृ लोग यदि देवगतिमें गये होंगे, तब तो उन्होंको कवल-भोजन करनेकी जरूरत ही नहीं। क्योंकि
देवोंका शरीर हमारे शरीरकी तरह सात धातुओंसे भरा हुआ नहीं है, अतः मनुष्योंकी तरह वे कवल-भोजन नहीं करते हैं, किन्तु अमृत प्रवाहसे सदा ही वृप्त रहते हैं । फिर देवगतिमें गये हुए पितृ लोगोंको ब्राह्मणादिके द्वारा भोजन पहुं. चाना यह कितना अज्ञान? देवलोकमें क्या समृद्धि कम है ? क्या देवोंने कभी क्षीर देखी नहीं है ? । जब देवलोग अद्भुत संपसे संपन्न ही रहते हैं, तो फिर किस बातकी पूर्तिके लिये भोले लोग ब्राह्मणोंके पेटकी पूजा करते होंगे? ।
यदि मरे हुए पितृ लोग मनुष्य गतिमें गये होंगे,यानि किसीजगहपर मनुष्यही हुए होंगे, तौभी कौओंके साथ उनका संबन्ध कभी नहीं हो सकता, जिससे कौओंकी नातको जिमाना उचित होसके । खयाल करो! कि मनुष्य जन्ममें अवतरे हुए पितृलोग गर्भावस्थामें वा बाल्यावस्था में स्वजनोंने दिये हुए भोजनको कैसे प्राप्त करसकते है?। अभीतक यह चमत्कार हुआ ही नहीं कि जिस घरमें,मरे हुए पितलोग अवतरे हैं, उसके घर वालोंने (माता पिताओंने) पैदा हुए उस बालकके ऊपर गिरता हुआ भोजन-वस्त्रादि देखा हो। फिर ऐसी प्रत्यक्ष विरुद्ध बातोंके बतानेवाले वेद आदि शास्त्र, सुशास्त्र कैसे हो सकते हैं? यदि पित लोग मर करके तिर्यच योनिमें गये हों तौभी विप्रनुक्त भोजन उनको नहीं प्राप्त हो सकता, क्यों कि सब जीव निज निज काँके अनुसार सुख दुःख पाते हैं।
नरकमें गये हुए पितृलोग तो परमाधार्मिकसे पीडा पाते हुए। सदा ही दुःखी रहते हैं। वहां खाना-पीना आदि आरामका नाम ही
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