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________________ धर्मशिक्षा. ब्राह्मण लोग पंडिताईका कामभी करतेहैं, इसलिये ब्राह्मणजातिकी महत्ता कही जातीहै, तो क्या दूसरी जातियों में विद्वान लोग नहीं हैं ? ओसवालोंमें ऐसे ऐसे विद्वान् पडे हुए हैं कि जिन्होंकी तर्कशक्तिपर काशीके विद्वान्भी लटु होजातेहैं । औरभी ब्राह्मणोंको समजना चाहिये कि अपने पैरमें संन्यासी साधु लोगोंको नमस्कार न करावें । क्योंकि साधु कितना भी अपठित हो, लेकिन साधु साधुही हैं, ब्राह्मण कितना भी विद्वान् क्यों न हो ? लेकिन वह गृहस्थ ही है। गृहस्थको कभी साधुसे अपने पैरमें नमस्कार करानेका अधिकार नहीं है, अपने पैरमें साधुको नमस्कार कराने वाले ब्राह्मण पंडित लोग बिलकुल अनुचित ही करतेहैं, इसमें कौन क्या कहेगा ?। साधुलोगोंने संसारको छोड दियाहै, और ब्राह्मण लोग संसारमें फंसे हुए हैं। अब कहिये पाठकगण! पूजनीय कौन होसकता है ? साधु ही, न कि गृहस्थ पंडित । अतः साधुको नमस्कार करके अनन्तर उसको पढाना ब्राह्मण लोगोंको उचित है। विद्या मात्रसे कृतकृत्य होजाना यह बडीभूल है । विना सदाचारके केवल विद्यासे कुछ परमार्थ नहीं होताहै, अतः अपने उचित आचारमें रक्त होकरके ब्राह्मण पंडितोंको अपनी ब्राह्मण जातिमें ही गुरुपनेका दावा करना अच्छाहै, नकि सब वर्गों में । बस! अब सिद्ध होगया कि सदाचारी महात्मा साधु लोग पूजनीयहैं, न कि केवल ब्राह्मण जाति । अब पांचवे वाक्यके उपर आईये । मरे हुवे पितृ लोगोंको भोजनादि पहुंचानेके वास्ते ब्राह्मणोंका पेट भरना यह कितनी अज्ञानता? क्या ब्राह्मण लोग पिट निमित्त भोजन खाकर फरागत नहीं जाते हैं, जिससे वे लोग मरे हुवे पित लोगोंको भोजन पहुंचा सकें। संसारीजीव संसारमें भ्रमण करता हुआ, देवगति, मनुष्यगति, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034803
Book TitleDharmshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherGulabchand Lallubhai Shah
Publication Year1915
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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