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धर्मशिक्षा. देवता कहना यह तो बडी भारी वेदकारकी चतुराई । "मुखमस्तीवि वक्तव्यम्" इस वचनका आदर करनेवाले वेदकारने तो बोलनेमें बिलकुल मर्यादा ही नहीं रक्खी । अस्तु ! पंडितोंके आगे ऐसे युक्तिरहित वाक्य हास ही को पैदा करते हैं।
अब चौथे वाक्यके ऊपर आई ये ! । ब्राह्मणोंकी पूजा बतानेवाला वेद ब्राह्मणोंका बड़ा भारी पक्षपाती मालूम पड़ता है। अन्यथा ऐसा ही कहना उचित था कि जो कोई सदाचारी ब्रह्मचारी मुनि महात्मा हो उसकी पूजा करनी चाहिये । क्या ब्राह्मण कपटी क्रोधी अभिमानी लोभी विषयानन्दी नहीं होते हैं ? बहुत, फिर ब्राह्मणकी पूजा करना क्यों लिखा?। जैसे वैश्यादि वर्ग महात्मा सदात्मा अधमात्मा ऐसे विभागोंमें विभक्त हैं वैसे ही ब्राह्मण वर्गभी प्रकट ही दिखाई देते हैं, फिर ब्राह्मणोंका ही पक्ष. पात क्यों ? वास्तवमें अगर कहा जाय तो दुर्गा चंडी आदि देवीयों के आगे निर्दय रीतिसे पशुओंका संहार करनेवाले ब्रा- . ह्मण लोगोंने सरासर दयाधर्म तो डुबा ही दिया है। देवीयोंके आगे पशुओंकी हत्या करके पशुओंके खूनसे ललाटमें तिलक करनेवाले विपोंने क्या दया देवीकी जान नहीं ली ? इस विषयमें अगर संदेह हो तो पूर्व देशमें जाकर देख लो ! यहतो मेरा कहना हो ही नहीं सकता कि सभी ब्राह्मण ऐसी हिंसा करते हैं। क्योंकि गुजरात मारवाड आदि प्रदेशोंमें दयालु ब्राह्मण भाई बहुत दिखाई देते हैं बहुत ब्राह्मण लोग नम्र एवं बड़े सज्जन हैं । परन्तु कहनेका मतलब यहो हैकि वेदकारने ब्राह्मणकी पूजा करनेको कोई वजह नहीं बतलाई । किस हेतुसे ब्राह्मण लोग वर्गों में बड़े हो सकते हैं ? । क्या वर्तमानमें ब्राह्मण लोग वैश्य लोगोंकी तरह नमक मिरच साबुन घृत तैल गुड कपास आदि सब रोजगार करनेको नहीं लग गये हैं ? । यदि कहा जाय कि
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