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________________ धर्मशिक्षा. १५ क्या गौपा गौ विष्टाशिवा हाता है ? क्या अब दूसरे वाक्य पर आईये ! गायका स्पर्श करनेसे पापका नाश कैसे होगा? गायके स्पर्शसे पाप के ध्वंसको माननेवाले वेदकारने रासभ के स्पर्शको पापघातक क्यों न कहा ? क्या रासभकी तरह गौ पशु नहीं है ? और पशु क्या मनुष्यसे अधिक अधिकार रखता है ? यदि पशु मनुष्यसे अधम ही है तो फिर गौ का स्पर्श पापघातक कैसे होगा ? अरे भोले वेदभक्तो : थोडी तो नजर खोलो! क्या गौ संसार चक्रमें भ्रमण नहीं करती है ? ! क्या गौ विष्ठादिक मलिन चीजोंको नहीं खाती है ? क्या गौ के बदन पर दंड , प्रहार नहीं होता है ? क्या गौ दुःखसे पुकार नहीं करती है ? क्या गौ को गोपालकी आज्ञामें नहीं रहना पडता है ? क्या गौके स्तनमेंसे लोग दूध नहीं निकाल लेते हैं ! क्या गौ दूसरे जीवोंको नहीं सताती है ? क्या गौ का मरण नहीं होता है । जब ऐसी क्षुद्रता गौमें रहा करती है तो फिर किस बातसे गौको श्रेष्ठ कही जाय ? जो अपने पुत्रके साथ भी दुराचार करती है वह गौ खुद आप पापके समुद्रमें डूब रही है तो हमारे पापको कैसे नष्ट करेगी। गौ की आत्मा यदि पापी न होती तो क्यों मनुष्य और देवके भवको छोडकर पशु जन्ममें आती । पुण्यसे उच्च गति और पापसे अधम गतिका होना क्या शास्त्रकार नहीं बताते हैं ? । अगर दुग्ध देनेसे गौ बडी कहलाती हो तो भैसने क्या अपराध किया ? । अगर गौ के पुच्छमें ३३००००००० देव रहा करते हैं ऐसा कहा जाय तो यहभी बड़ा उपहास ही है। विना सबूत ऐसी गप्पको कोई पंडित पुरुष नहीं मान सकता। अब तीसरे वाक्यके ऊपर नजर कीजिये ! वेदकार वृक्षोंकी पूजा क्यों बताता है? क्या वृक्षभी देवता है ? एकेन्द्रिय जीवको भी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034803
Book TitleDharmshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherGulabchand Lallubhai Shah
Publication Year1915
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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