________________
न्यायसूत्रोंको देखकर उनके आधारसे गोतमादि ऋषियोंने न्यायादि सूत्रों की रचना की । तो कहना चाहिये कि पहिलेके सूत्रोंका की कौन ? यदिखुद ईश्वरही कहोगे ? तब सोचो ! एकही ईश्वरने गौतम और कणादादि ऋषियोंको परस्पर विरोधी सूत्र क्यों दिये ? क्या प्रजाके चित्तको भ्रमित करना ईश्वर चाहता था? यदि ऐसी ही बात हो तबतो आपका ईश्वर बडाही दयालु ठहरेगा।
वाहजी वाह मित्र ! कैसी ईश्वरकी दया, जिसको अपनी प्रजाके ऊपरभी अहित करनेमें संकोच नहीं आया ।
' हम नहीं समझते हैं कि सब ऋषि लोगोको एक ही सत्य धर्म प्रतिपादक सूत्र देनेमें ईश्वरका क्या बिगडता था? प्रत्युत प्रजा धर्म विषयक सन्देह पीडासे पीडित नहीं होती, सत्य ध. मकी आराधना करके परमानन्दरूप बन जाती, यही इश्वरको बड़ा फायदा होता। अगर वेदका अवलंबन लेकर सूत्रोंकी रचना करनेमें आई, तो फिर वही पुनरुक्त करना पड़ता है कि ऋषि लोगोंको वेदका पूर्ण ज्ञान नहीं था! वरना परस्पर विरोधी विषयोंकी चर्चा नहीं होती। सनातनी लोग यह तो कहते ही नहीं कि यह अमुक ही ऋषि सत्य है उसीका सिद्धान्त उपादेय है, किन्तु सब ऋषि लोगों को एक सरिखे सत्कारमें लाते हैं।
___ क्या वाचक वर्ग! परस्पर विरोधी सिधान्तवाले सब ऋषिलोग माननीय हो सकते है ? हर्गिज नहीं ।
दरअस्लमें गौतमादि रुपियोंके कई कई सिद्धान्त प्रत्यक्षादि प्रमाणोसे बाधित होनेसे उनमेंसे कोई भी ऋषि पूर्ण वेदज्ञानी नहीं था।
वस्तुतः ऐसे कुटंग वेदकी रचना करनेवाला कौन? यही बडा भारी प्रश्न उठता है, अगर ईश्वरको वेद का कहोगे, तब तो
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com