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धर्मशिक्षा.
__संसारके सब पदार्थोको झूठा कहाहै। इस प्रकार जैमिनीय दर्शन भी एक विलक्षणेही है।
पाठक मित्रो ! देखी! वेदकी विचित्र लीला । एक ही वेदमेंसें निकलेहुए ये चार दर्शन कितने झघडे बखेडेमें गिरे हैं। परस्पर लडते हुए उन्होंने क्या वेदकी निन्दा नहीं को?, जब वे दर्शन परस्पर प्रतिरोधी हो कर स्वाभिप्रायानु रूप वेदपदाको लगाकर अन्यदर्शनके ऊपर आक्षेप करते हैं, तब जरूर एक एक दर्शनकी अपेक्षा दूसरे दर्शन वेद निन्दक ठहरते हैं। बस ! " नास्तिको वेदनिन्दकः" यह उन्हीके घरका कुठार परस्पर लड़ते हुए उन्हों के ऊपर ही आ कर गिरा । अहो ! कैसा कलह केलीका दुरंत परिणाम ? । अस्तु । अब बौद्धों की तरफ नजर की जाय तो, बौद्ध लोग वेदोंसे विपक्षी होकर एक और ही अपनी सृष्टि बताते हैं। तथाहि
बौद्धकी चार शाखाएं हैं। वैभाषिक १ सौत्रान्तिक २ योगाचार ३ और माध्यमिक ४ ।
उनमें वैभाषिकोंने चौथे क्षणमें वस्तुका नष्ट होना माना है। और सौत्रान्तिकोंने आत्माको नहीं माना, किंतु रूप-वेदना-विज्ञान संज्ञा-और संस्कार इन पांच स्कंधोंको परलोकगामी स्वीकारा है। और सौत्रान्तिकों के अभिप्रायसे सब बाह्य वस्तु अप्रत्यक्ष हैं। किंतु ज्ञानाकारद्वारा बाह्य वस्तुओंका अनुमान होता है, और सब वस्तु क्षणिक हैं । योगाचार बोद्धौं के हिसाबसे विज्ञान मात्र ही जगत् है । बाह्य वस्तु शशशृंग के बराबर है। माध्यमिकों के विचारसे सर्व शून्य हैं। देखिये महाशय वृन्द ! दर्शनोंमें कितना विरोध ? कितनी परस्पर भिन्न भिन्न मान्यता ?
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