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________________ धर्मशिक्षा. ૧૮૦ त्वके कोई भी व्रत, कष्ट, तपश्चर्या, मोक्षके साधक नहीं हैं, इस लिये सम्यकत्व पहेले हासिल करना चाहिये । ___ सम्यकत्व शुद्ध श्रद्धाका नाम है । शुद्ध श्रद्धा किसकी ! जिस विषयका विपरीत भान, संसार वर्धक है, उस विषयकी यथार्थ श्रद्धा-समकीत कही जाती है, वह विषय कौन ? देव गुरु और धर्म । सुदेवसुदेव यानी सच्चा देव, अर्थात् परमेश्वर । परमेश्वरके विषयमें बहुतोंकी भिन्न भिन्न राय है, मगर तत्वदृष्टिसे सोचनेपर यही स्फुरण होता है कि“सर्वज्ञो जितरागादि-दोषस्त्रैलोक्यपूजितः। यथास्थितार्थवादी च देवोऽहन परमेश्वरः" ॥१॥ अर्य. सर्वज्ञ ( समस्त पदार्थोंको-भूतकाल, वर्तमानकाल और भष्यिकाळ, इन तीनों काळकी-सुक्ष्म, बढी, दर, नजदीक, व्यवहित, प्रगट, समाय-सकल नोक अलोककी चीजें जानने वाला, और राग, देष, मोह वगैरह दूषणोंसे विककुळ मुक्त हुआ, तीनों जगत्से पूजिक, मोर यथार्य उपदेशक-सद्भत तत्त्वज्ञानका प्रकाशक स्वर कहावा है, भले ही पीछे उसका दूसरे नामोंसे न्या. हार , मगर हेपर वस्तु, ऐसी होतो है, इसमें कोई सन्दा नहीं।इपरके नाम Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034803
Book TitleDharmshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherGulabchand Lallubhai Shah
Publication Year1915
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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