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धर्मशिक्षा.
१८६ षयानन्द का लाभ अपने हाथ से क्यों खो दें। जहांतक विषय सामग्री की मौजूदी होगी, वहांतक चांदी काटेंगे ( मौज उडावेंगे)। जब विषयसामग्री चली जायगी, तब देख लेंगे, मगर याद रहे कि विषयों की तर्फ से उनका व हमारा वियोग होना सरासर दुःखों का जन्मदाता है, और हमारी तर्फसे विषयों का वियोग होना निरतिशय-परमानन्दका संपादक है । यह बडा भारी वैलक्षण्य, दोनों वियोगोंमें जिनके ध्यानमें पुख्ता प्रतीत हुआ है, वे धर्मात्मा महाशय पुरुष विषयों के आधीन नहीं रहते । किन्तु विषयों से छुट्टी पाने के समर्थ होने से धर्म की मौन उठाया करते हैं, और अपनी आत्मा का परमार्थ अच्छा साधते चल जाते हैं । सज्जनो! विषयोंमें ममता हटाकर समता देवीका शरण लेना चाहिए । समता ममता से पूर्ण विरोधवंती है। ममता का पल्ला जहांतक पकडे रहोगें, वहांतक समता देवी का दर्शन आकाश में रहा समझो। समता ममतारूपी सांपनीका जांगुली मंत्र है । समता शब्द को भी विपरीतरूपमें रखनेसे तामस का दर्शन होता हैं तो भला ! समता वस्तु से विपरीत होना क्योंकर तामसवृत्ति का उत्तेजक न होगा ? । अतः विषयों से मच्छित न हो के समता भाव-संतोष परिणति में मग्न होना यही श्रेयसाधक है, तब ही अतिथि संविभाग व्रत को पूर्ण उत्तेजन मिलेगा, और संत महांतों की चरण सेवासे परमपद हासिल होगा।
पूरा हुआ बारहवाँ व्रत अतिथि संविभाग । ' इति भावकधर्म-द्वादशवतनिवेदनम् ।
- ये बारह व्रत बता दिये, इन पालना गृहस्थ लोगोंका - अपर फर्ज है। इन व्रतोंका मूल-समकीत है, सिवाय सम्यक
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