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धर्मशिक्षा. खका प्रतीकार नहीं करता हुआ अपनेही पेटकी पूजा करनेमें मशगूल रहता है।
" दानेन भोगानाप्नोति "-दान से भोग मिलते हैं ' ऐसा कहना विनाविचार का है क्योंकि अनर्घ्यपात्र दान का क्षुद्र भोग क्या फल है ?। पात्रदान का मुख्य फल है-मोक्ष, जैसे कृषिका धान्य । और भोग, प्रासंगिक फल है, जैसे कृषिका घास। ___अहीरके लडके दरिद्र संगम ने भीख मांग के पैदा की हुई क्षीर को सुपात्रमें दे के वह पुण्य उपार्जन किया, जिसके जरिए वह सुभद्रशेठ के घरपर जन्म ले के वहां पर स्वर्गसे उतरती हुई स्वर्गीय भोग सामग्री के अद्भुत आनन्द भोगने को सौभाग्यशाली हुआ, जिसका नाम शालिभद्र कथानुयोगमें मशहूर है । ऐसा पात्रदान का अद्भुत प्रभाव देख पात्रदानमें कंजूसी नहीं रखना । दिलके दलेर हो के द्रव्य का सदुपयोग करना, यही धनियों के लिये धर्म का सुगम रास्ता है। दरिद्र मनुष्य भी रोटी से पात्रदान का सौभाग्य बराबर प्राप्त कर सकते हैं। दो रोटी में से आधी भी रोटी पात्रमें दे के दरिद्र लोग अपना दारिद्रय बखूबी रफा कर सकते हैं । धन्य है पुनिया श्रावक को, जिसका हाल पहले बता चूके हैं । तब ही तो कल्याण होता है और मनुष्य तकदीरवर-खुशकिस्मत होता है । परमार्थ काम किये सिवाय किसी हालतमें स्वार्थसिद्धि नहीं हो सकती । मरना एक ही बार है मगर " पेट भरा भंडार भरा " कभी नहीं होना चाहिए । अपना पेट तो कुत्ते गदहे तक भी भर लेते हैं मगर दूसरे की भलाई करना यही मानव जीवन का प्रगट तत्त्व है। इस भयंकर भवदावानल में पाप अग्नि से जलते हुए
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