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________________ १८३ परिक्षा श्रोत्रिय को बैल बकरा वगैरह कल्पता हुआ दाता पुरुष, अपने और पात्र पुरुष को दुर्गतिमें गिराता है । धर्मबुदिसे अ. योग्य वस्तु को देता हुआ-दाता जितना पापलिप्त नहीं होता, उतना पापलिप्त दोष को जानता हुआ भी लेनेवाला पुरुष होता है। अपात्र जन्तुओं को हनकर पात्र को पोषते हुए मूर्खजन अनेक मेढकों को हनकर सांप को क्यों नहीं पोषते ?। आहेतमत यह है कि सोना रूपया वगैरह का दान सं. यमी को नहीं देना, और अन्न आदिका दान मोक्ष-फलके लिये पात्र ही में देना । उत्तमपात्र मध्यमपात्र जघन्यपात्र कुपात्र और अपात्र का पुख्ता निरीक्षण करके पात्र ही में दान योग्य चीज का वितरण करना चाहिए । उत्तम पात्र हैं-महाव्रत धारण करनेवाले पांच समितियों करके समित तीन गुप्तिओंसे गुप्त समतापरिणामी मोक्षाभिलाषी जीवहितैषी महात्मा निःस्पृही मुनिलोग । मध्यमपात्र-शुद्ध श्रद्धालु व्रतधारी मुनिधर्माभिलाषी दयालु और न्यायसंपन्न गृहस्थ लोग हैं । जघन्यपात्र-शुद्ध श्रद्धालु शासन दीपक अत्रती महाशय हैं। ये तीन प्रकारके पात्र हुए, इनमें योग्य वस्तुका वितरण, तरतमभावसे अधिकाधिक फलदायक होता है । कुपात्र वे हैं, जो कुशास्त्रों के श्रवणसे वैरागी हो के. साधु-तपस्वी हुए हो, और कन्दमूल फल वगैरहसे जीवन चलाते हों, वे कषाय कपडे पहिननेवाले अथवा नंगे रहनेवाले शिखा-जटा धारण करनेवाले मठमै वा जंगल में रहनेवाले पांच अग्नियों को सहनेवाले शरीरपर भस्म-राख लगानेवाले स्वमतिकल्पनासे धर्माचरण करने पर भी मिथ्यादर्शनसे दूषित बने हुए एकदंडी वा त्रिदंडी, बाका जोगी वगैरह कुतीथि लोग हैं।' Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034803
Book TitleDharmshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherGulabchand Lallubhai Shah
Publication Year1915
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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