SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 198
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ૧૮ पर्वशिक्षाः नहीं है । जो जो हिंसक शव जिससे बनाये जाते हैं, उस लोहेका दान दयालु शास्त्रकार पसंद नहीं करते । अर्धप्रसूता ( मानो ! मर रही न हो) गाय को पर्व दिन रोज दान देनेवाला भी धार्मिक गिना जाता है, यह कैसो धर्म नीति ?। अशुचि चीजें खाने वाली और खुर से जीवों को हननेवालीगायके भी दानको धर्म में शामिल माननेवाले कितने अक्लमंद होंगे ? । स्वर्णमय रूप्यमय तिलमय घृतमय गाय को हिस्सेसे बांट लेने वालों को देनेवाले दाता को न मालूम क्या फल होता होगा ? । कामासक्ति की कारण, बन्धुओं के स्नेह रूपी पेड के लिये दावानल समान, कलह की उत्पत्ति भूमी, दुर्गति के द्वार की कुंजी, मोक्षद्वार की अर्गला, और आफत पैदा करनेवाली-कन्याके दान को भी कल्याण के लिये फरमाते हुए आगम को धन्य है। विवाह के वक्त दायजे का दान, जो धर्म बुद्धि से देते हैं, वह भी भस्म में घृतहोम के समान है । संक्रान्ति वगैरह दिनोंमें जो दान की प्रवृत्ति चला दी है, वह भी मुग्धों का ही काम है। मरे हुए की तृप्ति के लिये जो दान दिया जाता है, वह क्या है, मानो ! फल फूल की इच्छासे मुसल को पानी का सिंचन ही करना है । ब्राह्मणों को भोजन देने पर पितृलोग अगर तृप्त हो जाते होतो, एक मनुष्य के खानेपर दूसरा तृप्त क्यों न होगा। पुत्रका दिया दान यदि पितृलोगों के पाप को हननेवाला हो जाता हो बतलाईए ! पुत्रका किया हुआ तप पिताओं को मुक्तिसे क्यों न भेटा देगा ?। गंगा गया वगैरह स्थलों पर दान देनेसे पितृजन यदि तैर जाते हों तो वहीं पानीका अभिषेक करनेसे अन्यत्र आगसे दग्ध हुए पेड क्यों न पुनरुज्जीवित होंगे ?। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034803
Book TitleDharmshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherGulabchand Lallubhai Shah
Publication Year1915
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy