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________________ १७५ वर्मशिक देना शुरू करे । श्रावक को चाहिए कि खुद अपने हाथ से दान देनेका सौभाग्य प्राप्त करे । साधु भी अवशेष रहे इतना ग्रहण करें। भिक्षा लेके जाते हुए साधुओं के पीछे थोडी कदम तक श्रावक जाय बाद पोषध व्रत का पारणा करे। अगर चे गाँवमें साधुजी का जोग न हो तो भोजन के वक्त घर के द्वार का अवलोकन करे और सच्चे दिलसे भावना करे कि "यदि साधवोऽभविष्यन् तदा निस्तारितोऽहमभविष्यम्"। "अगर साधु होते तो मैं निस्तारित होता-मुझे लाभ मिलता"। (यह पोसह के पारणे की विधि) क्या तारीफ करें आनन्द कामदेव आदि श्रावकोंकी जिनका पोषधव्रत खुद भगवान महावीर की श्लाघापर चढा । धन्य है दृढव्रती श्रावकों को, जो बडे धैर्य पूर्वक कठिन व्रतोंकी राहपर चले जाते हैं और अपनी प्रतिज्ञा को पूरी किये सिवाय नहीं - हते । जिनकी आत्मा लघु कर्मवाली है, वे ही उत्तम पोसह की राह पर संचर सकते हैं। जिनका पुण्योदय दीपनेवाला हो, वे ही पोसह तरु की मधुर छायाका आनन्द उठा सकते हैं । जिनकी हद्द तरकी पर चढनेवाली हो, वे ही पोसह रूपी किळेमें घुसकर धर्मराजे से मिल सकते हैं। जिनकी आत्मा परमानन्द पाने को भाग्यशालिनी है, वे ही पोसह रूप अमृतरसका पान करनेको उद्यत हो सकते हैं । धन्य है उन महाशयों को, जो मोहकी टांग ढीली कर के आगे बढ़ते बढते यावत् धर्मराजे के किले-पोसह तक पहुँच गये । धन्य है उन सजनों को, जो कम रूपी आगसे जलते हुए भी अपूर्व वीर्यसे पोसह रूपी सरोवरमें डूबकी मारते भये । धन्य है उन पुण्यात्माओं को, जो पोसह रूपी बगीचेमें एकाग्र चित्र हो के परमात्माका प्रणिधान करते हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034803
Book TitleDharmshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherGulabchand Lallubhai Shah
Publication Year1915
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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