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________________ १७२ धर्मशिक्षा. झुकाते । मनुष्य जन्म पा के भी यदि कार्यसिद्धि न हो तो हाय ! फिर कहां रोना ?। देखिए मनुष्यों की हालत" आहारनिद्राभयमैथुनानि सामान्यमेतत्पशुभिर्नराणाम् । धर्मो हि तेषामधिको विशेषो धर्मेण हीनाः पशुभिः समानाः” ॥१॥ अर्थ: आहार नींद भय कामचेष्टा ये सब बातें मनुष्य और पशु सर्व साधारण हैं इन बातोंसे मनुष्य और पशुमें समानता है, मगर मनुष्यों में मनुष्यत्व का चिन्ह धर्म ही है धर्म अगर न रहा धर्म अगर न पाला, तो समझ लो ! कि मनुष्य पशु के समान है । धन्य हैं वे गृहस्थ लोग भी, जो पवित्र–उत्कृष्ट पोषधव्रतका पालन करते हैं । पोषध के पारणे के समय में, याद रहे कि साधुओं को दान दे के पारणा करना चाहिए । उपाश्रय पर जाके मुनिओं को निमन्त्रण करे कि " लाभ दीजिए !"। नवकार सहित ( नवकारसी) पञ्चक्खाण के वक्त श्रावक निमन्त्रण करने को आया हो, और साधुओं को नवकारसहित पञ्चक्खाण न हो, तो साधु यही कह दें कि वर्तमान जोग -इस वक्त प्रयोजन नहीं है । अगर श्रावक की तर्फसे भूरि भूरि प्रार्थना होवे तो उसका भाव रखने को साधु उसके घर गोचरी जायँ । मार्गमें श्रावक साधुओंके आगे चले । घरपर ले जाके श्रावक साधुओं से आसनपर विराजने की प्रार्थना करे, अगर साधुजी बैठे तो अच्छा, नहीं तो विनययुक्त होके श्रावक भिक्षा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034803
Book TitleDharmshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherGulabchand Lallubhai Shah
Publication Year1915
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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