________________
धर्मशिक्षा उसने बड़े हाथी से जो कि सम्राटको काबिल बैठने के कहा जाय, लकडियों का ढेर उठवाया, जो आत्मश्रेय संबंधी विचार करने को भाग्यशाली न हुआ। वह कौएँ उडानेमें चिंतामणि को फेंकता भया, जो घडीभर भी संसार की आफत से छुट्टी न पा सका ।
दिनभर के पुण्य पापका टोटल मिलानेका-दो घड़ी जितना वक्त जरूर निकालना चाहिए । “ दिन दिन पापकर्म की कमी होती चले" इस पर खूब ध्यान रखना। दौलत इज्जत
और भोगसंजोगके बढानेकी अभिलाषा बढती रहती है, और उ. सके लिये उद्यम भी कमरकस होता चला जाता है मगर आत्मस्वार्थकी सिद्धि करनेका प्रयत्न तो दूर रहा किंतु स्वप्न भी नहीं आता, यह कितनी घोर नींद ?। सजनो ! दो घडीका विश्राम लो!, संसार की महेनत की थकावट लो !, शांति पाओ!, स्वस्थ हो जाओ!, आत्मचिन्तन करो, कर्तव्य श्रेणी पर आरुढ हो जाओ !, आत्ममलको हटाकर पवित्रता प्राप्त करो, और सदनुभवानन्दकी लहरियोंमें अद्वैत सुख प्राप्त करो, बस ! सामायिक व्रत पूरा हुआ। दशवाँ देशावकाशिक व्रत.
com छठे दिगविरमण गुणव्रत में दशों दिशाओं में गमन करनेका जो परिमाण किया हो, उसमेंसे संक्षेप करना, इस व्रतका मतलब है, इतना ही नहीं. बल्कि प्राणातिपातविरमण व. गैरह व्रतों को भी संक्षिप्त करना इसी व्रतमें शामिल है।
छठवें व्रतमें जो दिशाओंका परिमाण किया है, उसे यावजीव श्रावक पाला करे । परंतु खयाल रहे कि छठवें व्रतमें जो बहुत क्षेत्र छुटा रक्खा गया है, वह हमेशा तो काममें नहीं आता
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com