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धमाशिक्षा.
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है। ज्ञानके दीपने पर भी जो मनुष्य भवकूपमें गिरनेका काम करे, तो वह सचमुच जान बुझ कर ही अपने गले पर छुरी फेरनेका काम करता है।
यह पक्का समझें कि केवल ज्ञान मात्रसे क्या होगा? । वैद्य पुरुष की वैद्यविद्या वैद्यका क्या उपकार करेगी-वैद्यको आरोग्य पर कैसे पहुँचा देगी ? यदि वैद्य विधि पूर्वक औषधको इस्तिमाल न करेगा। तैरने को जानता हुआ भी आदमी यदि तैरनेकी क्रियाको अमलमें न लायगा, तो उसका ज्ञान उसे जलके पार कैसे पहुँचायगा ?, इसलिये ज्ञान ज्यादह हो या कम हो, क्रिया अगर अच्छी होगी-चरित्र पवित्र होगा, तो समझ लो! वह महात्मा है। ज्ञानके विना भी चरित्रकी पवित्रतासे महात्मा बन सकता है, मगर चरित्रके बिना सिर्फ ज्ञान से ज्ञानी नहीं बन सकता, इसलिये चरित्रकी शुद्धि करना मानव जीवन का अव्वल उद्देश है, इसी से आदमी भव समुद्रका पार ले जाने वाली स्टीमर पा सकता है और उसपर बराबर आरोहण भी कर सकता है। चरित्रकी शुद्धि-जीवनकी पवित्रता सद् विचारोंसे जन्म लेती है, बस ! सदविचारों का जन्म कैसे पैदा हो ? इसीलिये शास्त्रकारोंने दो घडी तककी सामायिक स्थिति बताई है कि जिस व्रतमें आरूढ हुआ पुरुष अपनी आत्मत्तिके सुधारनेके लिये-अपने जीवनको निर्मलता होनेके लिये अच्छे अच्छे विचारों का जन्म दे सके । दिनभर संसार चक्रको धूमाता रहा पुरुष दो घडी भी अपनी आत्माके लिये यदि न निकाले, तो कितनी अफसोस की बात? जो शरीर हमारे साथ आनेवाला नहीं है, उसके लिये सारी जिन्दगी खतम की जाय और खुद अपने लिये-अपनी आत्माके मतलबके लिये-खास आत्मिक प्रयोजनार्थ दो घडीका भी समय न निकाला जाय, यह कितनी विवेककी रोशनी ?।
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