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________________ धशिक्षा. १६५ शिदाव्रत. node नवाँ सामायिकवत. हो गये तीन गुणव्रत । अब चार शिक्षाव्रतोंका अवसर है। उनमें पहिला सामायिक व्रतका स्वरूप बताते हैं दो घडी तक रागद्वेष का परिहार करके निरुपाधि-समभावमें रहनेका नाम है-सामायिक । सामायिक शब्द की अन्वर्थता हैसम यानी रागद्वेषसे रहित बने हुए को, आयो अर्थात् ज्ञानादि संपदाका जो लाभ, यानी प्रशमसुखकी प्राप्ति । यह अर्थ यद्यपि समाय शब्द ी का हुआ, तथापि समाय शब्दसे स्वार्थ ( उसी शब्दके अर्थ ) में इकण प्रत्यय आनेसे सामायिक शब्दका भी वही अर्थ समझना चाहिए । अथवा समाय यानी प्रशमसु खकी प्राप्ति है प्रयोजन जिसका, वह सामायिक है, इस प्रकार भी प्रयोजन अर्थमें समाय शब्दसे इकण प्रत्यय मिलाने पर सामायिक शब्दका अर्थ हो सकता है। सामायिकमें बैठा हुआ गृहस्थ साधु जैसा है, इसमें क्या कहना ?, इसी लिये तो सामायिकमें बैठे हुएको देव स्नात्रपूजा करनेका अधिकार नहीं है, क्यों कि भावस्तव की प्राप्ति के लिए द्रव्य स्तव का अवलम्बन करना पडता है । सामायिक करने पर तो भावस्तव जब प्राप्त हो ही जाता है, तो फिर ( सामायिकमें बैठे हुएको) देव स्नात्रपूना करनेका कोई प्रयोजन नहीं देखते । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034803
Book TitleDharmshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherGulabchand Lallubhai Shah
Publication Year1915
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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