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________________ धर्मशिक्षा. बनानेके लिये, छोड अभक्ष्योंको और वनस्पतियां क्या नहीं हैं ?। सच पूछो तो ककडी तुरई परवल चिभडा दुधी भीही करेला भाजी फली कंटोला वगैरह स्वादिष्ठ तरकारियोंके सामने अभक्ष्योंका स्वाद कुछ भी नहीं है। अभक्ष्य चीजें स्वादिष्ट लगो, तो भी उन्हें दुर्गतिके हेतुभूत समझ छोडना लाजिम है । क्यों कि इतर वनस्पतियोंकी अपेक्षा अभक्ष्य-अनन्त कायोंमें ज्यादह क्या बेशुमार जीवसत्ता मानी गई है। मुनिजनोंके लिये तो सचित्त व अभक्ष्य दोनोंका स्पर्श करना भी निषिद्ध है तो खानेकी तो बात ही कहाँ। " भोगने योग्य चीजोंका परिमाण करने से इस व्रतका पा. लन होता है " यह पहले कहा गया है, और इसी लिये चौदह नियम भी धारण किये जाते हैं। चौदह नियम क्या है मानो! दुनिया की सारे संसार की उपाधियों के रोकने का जबरदस्त किला है । और कुछ ज्यादह न बन आवे तो चौदह नियम तो जरूर गृहस्थोंको धारने चाहिएँ । जिनसे त्रिलोकीके आरंभपापकर्मरूपी लूटेरों से बचना सहज होता है वे चौदह नियम पुण्यशालियोंके मनोमंदिरों में स्थान पाते हैं । चौदह नियमकी विधि वगैरह दूसरी पुस्तकों में से देख लें। पूरा हुआ भोगोपभोग परिमाण व्रत॥ आठवाँ अनर्थदण्ड त्याग गुणवत. आटवे अनर्थदण्ड त्याग व्रतकी पहचान करनेमें पहले अनर्थदंडका भान करना जरूरी है । अनर्थदंड चार प्रकारका हैअपध्यान, पापकर्मका उपदेश, हिंसाजनक शस्त्रोंका देना, और ' प्रमादाचरण । इनमें अपध्यान दो प्रकारका है-आर्तध्यान और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034803
Book TitleDharmshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherGulabchand Lallubhai Shah
Publication Year1915
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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