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________________ वलिया. बत्तीस अनन्तकाय१ सुरनकंद २ वज्रकंद ३ हरीहलदी ४ सितावरी ५ हरा नरकचुर ६ अद्रक ७ बिरयावली ८ कुंवारी-गुंवारपाठा ९ थोर १० हरिगिलोय ११ लस्सन १२ बांसकरेला १३ गाजर १४ लुनिया की भाजी १५ लोढिया की भाजी १६ गिरिकर्णिका १७ पत्तों के कुंपल १८ खरसुआ १९ थेगी २० हरामोथा २१ लोणसुखवली २२ बिलहुडा २३ अमृतवेली २४ कांदामूला २५ छत्रटोप २६ विदल के अंकुर २७ बथवे की भाजी २८ वाल २९ पालक ३० कुली आमली ३१ आलूकंद ३२ पिंडालू ये, बत्तीस अनन्तकाय युक्त बाईस अभक्ष्य कदापि नहीं खाने चाहिएँ । मरना एक ही बार है, मगर पाप करके जीवनको सम्हाल लेना अच्छा नहीं । संसारमें खानेके लिये सैंकडों चीजें, जो कि अभक्ष्य-पापपोषक नहीं हैं, मौजूद है, तो फिर निषिद्ध वस्तुएँ क्यों खाना ? । रोटी शाक दाल कही दूधपाक मलाई ह. लवा पुरी कचौरी मिठाई पकौडो रायता लड्ड पेंडा मोतीचूर वगैरह दिव्य भोजनोंसे पूरी तृप्ति-पूरा स्वाद जब मिल जाता है तो अभक्ष्योंका स्पर्श क्यों करना ?। हरी वनस्पत्तियां भी संसारमें बहुत हैं कि जिनका स्वाद दिव्य अमृतको भी भूलानेवाला है, और अभक्ष्यकी भांति पापपोषक नहीं है । आम केला नारंगी सफरचंग दाक्ष खरबूजां अमरूद-तरबूज वगैरह रसमय वनस्पतियों से क्या अभक्ष्योंका स्वाद पूरा नहीं पड सकता है ? । तरकारी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034803
Book TitleDharmshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherGulabchand Lallubhai Shah
Publication Year1915
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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