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धमेशिक्षा
घडी छोडकर ही भोजन शुरू करते हैं, और दिनके अवसानके दो घडी पहले भोजन बंद कर देते हैं।
ग्यारहवाँ अभक्ष्य
द्विदल-- धर्मात्माओंको कच्छे गोरस ( दूध-दही-छाछ वगैरहा) के साथ द्विदल-दोदल वाले-मंग मठ चणा आदि (पका हो या कचा हो) अन्न कभी नहीं खाना चाहिए । बहुतेरे जैन नाम धारी भी लोग, खिचडीके साथ गरम नहीं किया हुआ दहीछाछ खानेमें आसक्त रहते हैं, मगर शास्त्र दृष्टिसे यह पाप भोजन है। हमारी नजरसे जीवोत्पत्ति नहीं दिखाई देनेसे अभक्ष्य चीजोको भक्ष्य मानना यह अज्ञानता है। हमारी क्षुद्र-स्थूलदृष्टि सू. क्ष्म-अतिसूक्ष्म जीवोंका प्रत्यक्ष नहीं कर सकती, और इसीलिये अभक्ष्य पदार्थों में जीवोंका अभाव मानना भी नहीं हो सकता । आप्त प्रवचन ही जब अभक्ष्योंमें जीव सत्ता साबीत कर रहा है, तो ( भले ही हमारी स्थूलदृष्टि जीव सत्ता को न देखे ) हमें इस विषयमें रत्तीभर भी शंका रखनेका स्थान नहीं मिल सकता । अनन्त पदार्थ ऐसे हैं कि जिन्हें हम हमारी नजरसे नहीं देखते हुए भी बे धडक स्वीकार करनेको तैयार है, तो फिर अभक्ष्यगत जीवोंने क्या अपराध किया कि जिनके माननेमें, आप्त-प्रवचन जैसा मजबूत सबूत रहते पर भी हम हिचकते हैं ?। ग्यारह अभक्ष्य बताए । बाकीके ग्यारह अभक्ष्य ये है
१२ बरफ १३ नशा १४ ओले १५ मट्टी १६ बहुबीजफल १७ संधान ( आचार ) १८ बैंगण १९ तुच्छफल २० अज्ञातफल २१ चलितरस २२ अनंतकाय ।
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