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धर्मशिक्षा.
૧૨૧ रौद्रध्यान । आध्यान चार प्रकारका है-एक, अनिष्ट-रूप रस गन्ध स्पर्श और शब्दका संजोग होनेपर, उसके वियोगका-हटानेका चिंतन करना । दूसरा शूल वगैरह व्याधि आने पर उसके हटाने की चिंता करना । तीसरा अच्छे अच्छे भोग्य वस्तुओंका कभी वियोग न हो, ऐसा अध्यवसाय करना । चौथा राज राजेश्वरकी ऋद्धिकी प्रार्थना करना । रौद्रध्यान भी चार प्रकारका है-हिंसानुबन्धी, मृषानुबन्धी, स्तेयानुबन्धी, और धनरक्षानुबन्धी। हिंसानुवन्धी रौद्रध्यान वह है कि जीवोंके वध करनेकी भावना करना । मृषानुबन्धी रौद्रध्यान यह है कि अनेक प्रकारके माया प्रपंच करके जीवोंको क्लेश देनेका विचार करना । स्तेयानुबन्धी रौद्रध्यान वह है-धन हरण करके प्राणियोंको दुःखी करनेका इरादा रखना । धनरक्षणानुबन्धी रौद्रध्यान वह है कि दिनरात धनके रक्षण करनेकी चिन्तामें इस कदर गुम होना, कि सब पर शंकाशील हो के बुरे अध्यवसायमें मग्न रहना । यह अनर्थदंडका-चार प्रकारका आत्तव्यान व रौद्रध्यान नामक प्रथम भेद हुआ। दूसरा भेद-पापकर्मका उपदेश । “बैलका दमन करो! बैलको पीटो! । क्षेत्रको खेडो, मेघ वरस चूका है, बोनेका वक्त चला जायगा, इसलिये फौरन खेतकी सम्हाल लो? । घोडेको पंढ बनाओ! वनमें दावानल लगा दो तालाबको सूखा दो!" वगैरह पापकर्मका उपदेश करना यह दूसरा अनर्थदंडका भेद है । हल तलवार मुसल छुरी वगैरह हिंसाजनक चीजोंको देना, यह तीसरा अनर्थदंडका भेद । मारे कुतूहलके गीत नाच नाटक वगैरह तमाशे देखना, कामशास्त्रमें रमण करना, शराब शहद, वगैरह पापमय चीजोंका सेवन करना, जलक्रीडा करना, हिंडोले पर हिचकी खाना, शत्रुके पुत्रोंके साथ वैर-विरोध बढाना, तथा भोजनकथा, स्त्रीकथा, देशकथा, राजकथा वगैरह बालचेष्टाएँ, प्रमादाचरण है, यह चौथा भेद अनर्थेदंडका हुआ।
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