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धर्मशिक्षा. “ नैवाहतिर्न च स्नानं न श्राद्धं देवतार्चनम् ।
दानं वा विहितं रात्री भोजनं तु विशेषतः" ॥२॥ " देवैस्तु भुक्तं पूर्वान्हे मध्यान्हे ऋषिभिस्तथा। __ अपरान्हे च पितृभिःसायान्हे दैत्यदानवैः" ॥३॥ " सन्ध्यायां यक्षरक्षोभिः सदा भुक्तं कुलोछह !।
सर्ववेलामतिक्रम्य रात्रौ भुक्तमभोजनम्" ॥४॥ " हन्नाभिपद्मसंकोचश्चंडरोचिरपायतः। अतो नक्तं न भोक्तव्यं सूक्ष्मजीवादनादपि॥५॥ अर्थः
सूर्य, ऋग् यजु साम इन तीन वेदोंके तेजः स्वरूप है । उसके किरणों से पवित्र हुआ-सब काम करना चाहिए । रात को सूर्य न होनेसे खानेका काम करना धर्म विरुद्ध है । रातको आहुति स्नान श्राद्ध देवपूना और दान नहीं करना, और भोजन तो विशेष रीतिसे-हर्गिज नहीं करना। पूर्वान्हमें देवताओंने खाया, मध्यान्हमें ऋषियोंने, उत्तरान्हमें पितृोंने, शामको दैत्य-दानवोंने, और सन्ध्या के वक्त यक्ष-राक्षसोंने खाया । इसलिये सब वेलाओंको छोडकर रातको जो खाना है, सो अभोजन है-धर्म नीतिसे बर्खिलाफ है।
इस शरीरमें दो कमल है-एक हृदयका कमल, दूसरा नाभिका कमल । हृदयका जो कमल है, वह अधोमुख है, और नाभिका कमल ऊर्ध्वमुख है। ये दोनों कमल सूर्य के अस्त हो जाने पर संकुचित हो जाते हैं, इस लिये, और सूक्ष्म जीवों के, भी भक्षण का प्रसंग होनेके कारण सूर्यास्तके बाद नहीं खाना चाहिए।
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