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धर्मशिक्षा कि मक्खियों के मुँहसे गिरा हुआ उच्छिष्ट शहद भी देव स्नानमें लोग लगाते है ?॥
रात्रिभोजनके दोषरातको निरंकुश संचरते हुए-प्रेत पिशाच वगैरहसे उच्छिष्ट होता हुआ अन्न धर्मात्मा लोग नहीं खा सकते । मारे घोर अंधेरेके रातको अन्न पडते हुए जीव नहीं दिखाइ देनेके कारण, रात्रिभोजन नहीं करना चाहिए । दिनके प्रकाशमें जितनी सावधानता खाते वक्त रक्खी जा सकती है उतनी सावधानता रात को हर्गिज नहीं रख्खी जा सकती । भोज्य वस्तुओंमें चींटी अगर गिरी हो, तो दिनमें मालूम पड सकती है, मगर रातके वक्त तो भोजनमें जहरी जीवों तक का भी भान नहीं रहता, और जहरी जीबों व खानेवालोंको नुकशान क्या गरण तककी हद्दपर पहुँचना पडता है, इसमें क्या सन्देह ? ।
देखिए ! चींटी बुद्धिका घात करती है । जू, जलोदर पैदा करती है । मख्खी वमन कराती है। मकडी, कुष्ट रोग जगाती है। कंटक (कांटा) और लकडीका टुकडा, गलेमें पीडा उत्पन्न करता है। शाक वगैरहमें गिरा हुआ बिच्छू ता. लुको तोड डालता है। और गलेमें लग गया हुआ वाल स्वर भंगके लिये होता है, इत्यादि रात्रिभोजनके दोष सबको प्रत्यक्ष विदित हैं। रात्रिभोजनके लिये जैनाचार्योंकी ही नहीं बल्कि और धर्माचार्योकी भी साफ मना ही है।
देखिए ! वैदिक धर्मके वाक्य" त्रयीतेजोमयो भानुरिति वेदविदो विदुः । तत्करैः पूतमखिलं शुभं कर्म समाचरेत् " ॥१॥
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