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धशिक्षा. दरतका भोजन है, और मांस राक्षसीय आहार है । मांसभक्षी
और धान्यभोजी प्राणियोंकी शारीरिक प्रकृतिमें बहुत फेरफार प्रत्यक्ष सिद्ध है।
मांसकी पैदायश और अन्नकी पैदायशके कारणोंका जमीन आस्मान जितना फर्क व्यवहारमें मशहूर है, इसलिये धर्मास्मा होना चाहनेवालोंको मांसका स्पर्श भी नहीं करना चाहिए । मांस भक्षणके विषयमें ज्यादह विचार देखना हो तो हमारे गुरुवर्य पूज्यपाद शास्त्रविशारद जैनाचार्य श्री विजयधर्मसूरि जी महाराजकी पुस्तक अहिंसादिग्दर्शन देख लें।
मक्खनके दोषअन्तर्मुहूर्त्तके बाद मक्खनमें बहुत सूक्ष्म जीवोंकी राशि पैदा होती है, इसलिये मक्खन अभक्ष्य है । एक जीवको मारनेमें कितना पाप लगता है, तो जीवोंसे भरे हुए मक्खनको दयालु लोग कैसे खा सकते हैं ?।
मधुके दोषअनेक जन्तु समूहको मारनेपर पैदा होनेवाला मधु (शहद ) भी काबिल खानेके नहीं है ।
सच पूछिए ! तो शहद एक मक्खियों व भौरोंकी लार स्वरूप ही है। ऐसी निन्दनीय चीजको कौन अक्लमंद इस्तिमाल कर सकता है ? । एक एक पुष्पसे रस पीकर मक्खियाँ जो वमन करती हैं, वह जूठा शहद किस अक्लमंदको रोचक हो सकता है ? । जिसके रसके आस्वादसे नरककी भयंकर वेदनाएँ पायी जाती हैं, वह शहद भो र मधुर कहा जाय, तो दुनियामें अमधुर चीज कौन ठहरेगी? क्या आश्चर्य की बात है
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