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धर्मशिक्षा.
पित लोगों को मांस चढाने की क्या बात करनी ! । देवता लोगों के शरीर जब धातु रहित हैं, और वे कवल आहार नहीं करते तो फिर मांस नहीं खाने वाले उन्हें मांस कल्पन करना यह कितना मोह ? । पितृ लोग तो अपने पुण्यपापानुसार गति को प्राप्त किये हुए निज कर्मका फल भोगा करते हैं, और पुत्र के किये हुए पुण्य में सेरत्तीभरभी फायदा जब नहीं उठा सकते तो फिर उन्हें मांस ढौकना यह कैसा पापकर्म ? । पक्की बात है कि पुत्रका किया पुण्य पिता के आगे उपस्थित नहीं हो सकता, कहां देखा-नींब वृक्ष पर किया हुआ सिंचन आंब पेडको फल पैदा करदे ?। अच्छे स. त्कार के लायक-अतिथिओंको नरक का हेतुभूत मांस परोसना यह कम शरमकी बात नहीं है । मन्त्र करके संस्कृत हुआ भी मांस नरकादि दुर्गतिका कारण है, इसमें कोई सन्देह नहीं । अगर मन्त्र के प्रभाव से मांसभक्षी मनुष्य मांस भक्षण के पापसे छुट जाता हो, तो फिर सब प्रकार के पाप कर्म करके पापी बने हुए-नरकगति के अतिथि बने हुए लोग, पापनाशक मन्त्र के स्मरण मात्र से पाप रहित-सुगति के लायक क्यों न हो जायेंगे । पापनाशक मन्त्रके स्मरण मात्रसे महा पापी आदमी, अगर कृताथे हो जाते हों, तो शास्त्रमें सब पापकर्मों का जो निषेध किया है, वह निरर्थक ठहरेगा, क्यों कि मन्त्रमात्रसे सभी पापों का नाश जब हो ही जायगा, तो फिर क्रूर कर्म करनेमें क्या हर्ज होगा, मगर यह सब प्रलाप है। मांसकी उत्पत्ति जब प्राणी वधके ताल्लुक है, तो हिंसामय मांस भक्षण, किसी हालतमेंकिसी सूरतसे फायदामंद नहीं हो सकता, यह निःतन्दिग्ध बात है । कच्ची पकी और पकाती हुइ मांस पेशियोंमें, अनन्त निगोदजीवों का सतत उत्पात हुआ करता है, यह आगम सिद्ध बात विश्वास में ले के कभी मांस भक्षण तरफ निगाह नहीं
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