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१५.
धर्माशिक्षा अर्थ--सम्मति (अनुमोदन) देनेवाला, हन दिये प्राणीके अङ्गोंका विभाग करनेवाला, प्राणीको हनने वाला, मांसको खरीद करनेवाला, मांस बेचनेवाला, मांसको पकानेवाला, मांस परोसनेवाला, और मांसको खानेवाला,ये सब घातकके शुमारमें हैं।
मांस निषेधक और भी श्लोक मनुका देख लीजिए !"नाकृत्वा प्राणिनां हिंसां मांसमुत्पद्यते क्वचित् । न च प्राणिवधः स्वर्ग्यस्तस्मान् मांसं विवर्जयेत्॥१॥
प्राणिओं की हिंसा किये बिदुन किसी हालतमें मांस पैदा नहीं हो सकता, और प्राणी वध किसी सूरतसे स्वर्गजनक है ही नहीं, इस लिये सुख-दुःखके प्राप्ति-परिहारको चाहनेवाला सज्जन किसी वक्त मांसका आदर न करे, इतना ही क्यों ?, बल्कि दूसरे से मराते हुए पाणिओंको बचावें ।
यद्यपि पूर्वोक्त मनु श्लोकसे आठ प्रकारके घातक बताये गये, मगर लंबी नजरसे खयाल करने पर मांस भक्षक ही अव्वल घातक मालूम पडता है, क्यों कि घातक (प्राणीको मारनेवाला) पुरुष, प्राणी गणको काहेको मारेगा, अगर मांसाशी न होंगे। मांस भक्षियों के लिये तो प्राणी हत्या होती है। जब प्राणी हत्याके प्रधान निमित्त-असाधारण कारण मांस भक्षी ही है, तो प्रधान घातक भी मांस भक्षी ही कहे जाय तो क्या हर्ज है ? । जिसके अ. न्दर पडे हुए मिष्टान्न भी विष्ठा रूप हो जाते हैं, और अमृत भी मुत्ररूप बन जाता है, उस पापी पेट के लिये-नालायक शरीर के लिये कौन अक्लमंद पापका आचरण करे ?। जिनके मुँहसे यह निकला कि "मांस भक्षणमें दोष नहीं है"। उनके शिक्षक-उपाध्याय, कठिन छातीवाले-कठोर हृदयवाले होने चाहिएँ । मांसभक्षी
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