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धर्मशिक्षा.
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भाषाशास्त्री बनाओ !, अपनेको लडका न हो, कमअक्लका हो, न पढता हो, तो दूसरोंके लडकोंको आलिमफाजिल बनानेकी सतत कोशिश करते रहो !, देश बन्धुओंके पर पवित्र प्रेम रक्खो !, मुनि जनोंकी वृद्धि होवे-साधु बढे, ऐसी कोशिश करो, श्री संघपर पूज्य बुद्धि रक्खो !, साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका, इस चतुर्विध संघकी सेवा भक्ति करते रहो इत्यादि कर्तव्योंमें द्रव्यका सदुपयोग कर मानव जीवनका लाभ लो:, पुस्तकें छपवानेमें खर्च दो!, अच्छे अच्छे मासिक, पाक्षिक, साप्ताहिक अखबारोंके प्रगट करनेमें खर्च दो, कंजूस मत हो !, खर्च करना सिखो ! फूटी पाई भी साथ नहीं ले जाओगे!, लोभ करके धन बचाते हो, मगर याद रक्खो ! एक दिन लोभ पिशाचकी बदौलत सब धनका नाश देखोगे ! नखकी तरह लक्ष्मीके बहावको छेदते रहो, नहीं तो प्रमादसे स्खलना आनेपर जीते नखकी तरह मूलसे लक्ष्मी विनष्ट हो जायगी, त्रिलोकीमें समुद्र के पार कीर्तिको फैलानेका मन है, धर्मराजाको प्रसन्न करनेका दिल है, देवताओंका प्रसाद लेनेकी अभिलाषा है, भव भव, दारिद्यको धूल फकानेकी इच्छा है, विना तपस्या भी स्वर्ग गतिको प्राप्त करनेका मनोरथ है, ओर मुक्ति नगरीके मार्गका मुसाफिर बननेकी चाहना है, तो दान व्रतका स्वीकार करो!, लोभको तिलाञ्जलि दे दो, मक्खी चूस मत हो :, मगर यह बात. सिवाय संतोष पकडे नहीं होगी और संतोष पकडनासंतोषी होना-अमुक नियमित पूंजीमें दिलकी मर्यादा बांधना, यही इस व्रतका मतलब है। बस ! पाँचवा व्रत-बयान संतोष रखनेका पूरा हुआ।
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