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________________ १४२ धर्मशिक्षा. कुछ मिला करे, समझ सको तो समझ लो !-" जातिका उद्धार कैसे हो, " यहां इस विषयको कोई प्रधानता नहीं दी गई है कि लंबा चौडा विवेचन करे, किन्तु प्रसंगोपात्त बातें बताई जाती हैं। शासन प्रेमियोंपर ऐसा वात्सल्य करो कि उनकी जिन्दगी, चैनसे चल सके, और यही वास्तवमें साधर्मिक वात्सल्य है । एक दिन भर पेट लड्ड जिमानेसे साधर्मिक वात्सल्य नहीं होता, वक्त देखो ! समय देखो !, जहां खर्चनेकी अत्यावश्यकता है, वहां दृष्टि न लगाकर साहमीवच्छलके बहानेसे पेट पूजामें फिजूल द्रव्य बरबाद कर देते हो, यह कितनी अविवेक चेष्टा ? । एक दिनके लिये भरपेट, तरह तरहके दिव्य भोजन जिमानेके बनिस्बत गरीबोंकी-दरिद्र श्रावकोंकी जिन्दगीके लिये रोटी शाकहीका बंदोबस्त करना उमदा साहमिवच्छल है। खजानेमें पैसा न रहता हो, कदने लगता हो, तो जगह जगह छोटी मोटी पाठशालाएँ स्थापो !, बडे बडे गुरुकुलोंको प्रकट करो !, ज्ञान चैत्यके आलिशान मकानात बंधवाओ!, जीर्ण जिनालयोंका उद्धार करो!, प्राचीन शास्त्रोंको मुद्रणमें लाके पबलिकमें प्रकाशित करो !, प्रत्येक शास्त्रकी-प्रत्येक ग्रन्थकी, अनेक प्रतियाँ लिखवा कर नये भंडारोंको स्थापन करो !, पुस्तकें सडे नहीं, प्रतियाँ कीट भक्ष्य होवे नहीं, इसकी फिक्र रक्खो !, अपने अपने लडकोंको इल्म पढाओ !, इल्मके लिये द्रव्यके व्ययकी ओर खयाल मत करो !, व्यवहारिक शिक्षणके साथ धार्मिक शिक्षण दि. लावो !, धार्मिक शिक्षालयमें भेजकर लडकोंको धर्मज्ञानी बनाओ!, संस्कृतमें, व्याकरण, न्याय, साहित्याचार्य बनाओ !, इंग्लीशमें एम-एसे भी आगे बढादो, हिन्दी, बंगाली, जर्मनी, वगैरह भाषाओंके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034803
Book TitleDharmshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherGulabchand Lallubhai Shah
Publication Year1915
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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