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धशिक्षा. जिस लक्ष्मीके लोभमें अंधे बने हुए लोग, धर्मका तिरस्कार करते हैं, वह लक्ष्मी, नदीकी तरह नीच गामिनी है, निद्राकी तरह. चैतन्यको शिथिल करनेवाली है, शराबकी तरह मदका पोषण करनेवाली है, धुवांकी तरह अन्धा बनानेवाली है, बिजलीकी तरह चपलता स्वभावको लिये बैठी है, दावानलकी ज्वालाकी तरह तृष्णाको उल्लसित करनेवाली है, और कुलटा-व्यभिवारिणीकी तरह स्वतन्त्र मतिसे-स्वच्छन्द रीतिसे जहां तहां नया नया चूल्हा बनानेवाली है, इधर उधर भागा भाग करनेवाली है। धिकार है बहुतोंके आधीन धनको, जिसको, दायाद लोग ( भाग लेनेवाले) चाहते हैं, चोर लोग चोरी कर ले जाते हैं, राजा लोक खींच लेते हैं, आग, छल पाके भस्मसात् बना देती है, पा. नीका जोर स्वाहा कर देता है, दुर्विनीत कुपुत्र, फिजूल उडा देते हैं, और जमीनमें गाड दिये हुए धनको, यक्ष वगैरह हरण करलेते हैं । अक्लमंद-बडे मनवाले भी लोग, धनकी इच्छासे विव्हल बने हुए क्या क्या नहीं करते?,-नीच आदमीके आगे भी मीठे मीठे वचन बोलते हैं, सिर झुकाते हैं, दुर्गुणीको भी, शत्रुको भी, उंचे उंचे गुणोंके कीर्तनसे रंजन करते हैं, और कृतघ्न-बेअक्लकी सेवा करनेमें कुछ भी नहीं हिचकते ।
यह जो लक्ष्मी, नीचकी तर्फ दौडी जाती है, तो क्या समुद्रके पानीके संगसे?; और कमलिनी के संगसे लक्ष्मीके पाँवमें क्या कंटक लगा है, कि जिससे वह कहीं पांव नहीं ठहराती। लक्ष्मीके उन्मादसे लोगोंकी चैतन्यशक्ति जो छिप जाती है, इसका कारण शायद लक्ष्मीको विषका संसर्ग ही हो तो ना नहीं, जो कुछ हो, तत्वज्ञान यही कहता है कि लक्ष्मीपर तृष्णाको स्वतन्त्रता नहीं देनी चाहिए, और द्रव्यका परिमाण कर धर्मस्थानपर लक्ष्मीका सदुपयोग करना चाहिए, लक्ष्मीका सदुपयोग सात जगह
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