SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धर्मशिक्षा. ૨૨૧ द्रव्यसे जो होना है, सो आरम्भसे पैदा किये दौलतका सदुपयोग करना है । पापसे पैसा पैदा किया, तो उसे अच्छी जगहमें खर्च करनेसे पैसेका सदुपयोग होता है। पाप किये बिना पैसा पैदा नहीं हो सकता, इसलिये पैसेको संसारके कामोंमें खर्च करनेके साथ, धर्ममें भी अवश्य खर्च करना चाहिये । इससे परिग्रहमें कोई स्वतंत्र गुण सिद्ध नहीं हुआ। पापोंसे बचनेके लिये पापजन्य दौलतको धर्ममें खर्च करनेसे बतलाईए ! क्या नया गुण हुआ ? कीचडमें पाँव बिगाडके जलसे धोनेमें क्या कोई नया गुण मिल सकता है, कभी नहीं । अगर गुण ही के लिये द्रव्यकी पैदायश करना अभिप्रेत हो, तो यही शास्त्रकारोंका फरमाना है कि द्रव्यको मत पैदा करो ! वरन् अपरिग्रही साधु बन जाओ!, इसीसे नया गुण पैदा होगा। मगर धर्मके लिये जो दौलतको चाहता है, उसको द्रव्यकी इच्छा न करना ही अच्छा है, वही परम धर्म है । धनकी इच्छामें धर्मका जन्म देनेकी ताकत है ही नहीं, जिसमें, जिसके पैदा करनेकी ताकत न होगी, उससे उसका जन्म कभी न होगा, वीतराग ही दशा सर्वोत्कृष्ट धर्मकी अव्वल माता है, अगर मोक्ष मिलनेकी आशा रखते हो, मोक्ष पानेकी उत्कट आकांक्षा धरते हो, तो समझो ! कि कहीं पर धूमा करो! मगर फिर फिर के वीतरागही दशा पर आना पडेगा, और तव ही सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, और सम्यक्चारित्र, इन तीनोंकी समष्टि-समुच्चयावस्था बनेगी। यही समष्टि-समुच्चयावस्था, मोक्षका एक अद्वितीय-असाधारण मार्ग है, इसी सिद्धि-मुक्तिकी शिलापर आके सबने सिद्धिशिलापर आरोहण किया है, करते है, और करेंगे, । यह समष्टि, द्रव्यके साथ बडी शत्रुता रखती है, द्रव्यकी चाहना होते तक इस समष्टिका उदय हर्गिज नहीं होता । संग (परिग्रह ) से, उदयावस्थाको प्राप्त नहीं हुएमी-राग Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034803
Book TitleDharmshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherGulabchand Lallubhai Shah
Publication Year1915
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy