SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 131
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ૧૧૪ धर्मशिक्षा “शम्भु स्वयम्भु हरयो हरिणेक्षणानां येनाऽक्रियन्त सततंगहकर्मदासाः। वाचामगोचर चरित्रविचित्रिताय तस्मै नमो भगवते कुसुमध्वजाय" ॥ १॥ अर्थः___ " भगवान् कामदेवको नमस्कार हो, जिसने, सारी दुनियाको वश करनेके साथ दुनियाके नायक-शम्भु, (शंकर) स्वयम्भु, (ब्रह्मा) और हरि, (कृष्ण) कोभी औरतोंके घर कामके गुलाम-खिदमतगार बनाये, इसीसे कामदेवकी शक्तिका प्रभाव, वचनोंके गोचरमें नहीं सकता, जभी तो कामदेव, भगवान् शब्दसे व्यवहृत हुआ"। तथापि काम, क्रोध, लोभ, मोह राग द्वेषको चूर्ण बनानेवाले, निष्कलंक, निरंजन निर्लेप, ज्योतिः स्वरूप, परमात्मा वीत. रागदेवके परमविशुद्ध, शांति संपादक, स्थिरता उत्पादक और भवरोगका अद्वितीय औषध, भूत-शासनके सेवक-भक्त-उपासक बने हुए श्रमणोपासकों का, कामदेव, सर्वथा नहीं तो देशतः जरूर, ढीला पडजाता है, इसमें कोई सन्देह नहीं । यह पक्की बात है कि सद्विवेक रुपी रत्नोंकी पैदायश, सिवाय वीतराग शासनके, और कहीं नहीं है, जभी तो अन्यत्र कषायोंको उत्तेजन मिलताहै, जब शांतिका विशुद्ध आनन्द, वीतराग भक्त पा रहे हैं। कामदेव अफसर, इन्द्रियों पर सवार होके जगद् विजयकी यात्रा करनेको निकलता है । इन्द्रियाँही कामदेवके विजय होनेमें Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034803
Book TitleDharmshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherGulabchand Lallubhai Shah
Publication Year1915
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy