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धर्मशिक्षा
૧૧૩ अस्लमें वह दुःखही है, इसमें कोई सन्देह नहीं । जो कवि लोग, नारियोंको सुवर्ण प्रतिमासे उपमा देते हैं, वे, छोड स्त्रियोंको, सुवर्ण प्रतिमाहीको आलिंगन करके क्यों तृप्त नहीं होते ? । स्त्रीका जो अंग निन्दनीय है, और गोपनीय ( काबिल ढांकनेक ) है, उसीमें लोग यदि अनुरागी बनें, तो और किससे वैराग्य पावेंगे? । चन्द्रमा, पुंडरीक कमल, कुन्द पुष्प वगैरह दिव्य चीजोंको, मांस व हड्डीसे बने हुए स्त्रियोंके अङ्गोकें उपमान ( उपमा ) बनाकर मोही कवियोंने फिजूल कम कीमतकी करदी। कहां प्रभावशाली तेजोमय, आल्हाद जनक चन्द्र वगैरह दिव्य पदार्य, और कहां बदबूका खजाना, अशुचिका ढेर, हड्डीकी पुतली औरत ? । चूतड, छाती, थनका, बोझवाली-औरतको, उरस्थल ( छाती) पर चढाकर मन्दमति लोग, रतिमें मग्न हो जाते हैं, परंतु उसवक्त यह विवेक नहीं आता कि-" संसार महासागरके मध्य भागमें डुबानेवाली शिलाको, मैं कंठमें बांध रहा हूं"। स्त्रीको छातीपर चढाना क्या है, मानो ! बडी शिलाही गलपर बांधनी है । जैसे शिलाको गलेमें बांधनेपर, जलाशय नहीं तैरा जाता, वैसे स्त्रीरुपी शिलाको गलेमें बांधनेपर संसार महासागरका पार पाना नहीं हो सकता, उलटा संसारमें डुबना ही होता है।
स्त्री, भव समुद्रकी वेला है। स्त्री, काम देवकी राजधानी है। स्त्री, मदोन्माद करनेवाली मदिरा है । स्त्री, विषय रूपी मृग तृष्णाका मरु स्थल है। स्त्री, महामोह अंधकारको फैलाने वाली कृष्णपक्षी रात है। स्त्री, विपदाओंकी खान है, इसलिये, हे सज्जनो! दुलहिनमें अंधे मत बनो ! । यद्यपि काम राजाका प्राबल्य चारों ओर छा गया है, और हरि, हर, ब्रह्मा, पुरन्दर वगैरह माहास्मा लोगोंकी भी हज्जामपट्टी, कामदेवने अच्छो की है, इसीलिये तो भर्तृहरिशतकमें भर्तृहरि फरमा रहे हैं कि
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