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এলাহী, कर्म विपाकको जन्म देता है । नरककी भयानक वेदनाके आगे, रमणीके स्तन स्पर्शका सुख रत्ती भरभी नहीं है। कहां, मेरु पर्वत जितनी नरककी अपार वेदना, और कहां संसारका अणुमात्र विषय सुख?। मुग्ध लोग, मुग्धाक्षियों (औरतों) के मध्यभाग पर लेट जाते हैं, पर यह नहीं समझते-" यह मध्यभाग, सचमुच संसार महासागरका मध्यभाग है। स्त्रियोंकी तीन वलियों के तरंगोंसे आदमीका मन खींचा जाता है, मगर तत्त्वविद्या यह है की तीन वलियां क्या हैं, ? सचमुच तीन वैतरणी नदियां हैं। स्त्रीकी नाभि रूपी बावलीमें, कामीका कामात हृदय, डुबकी मारता हैं, परंतु समता-शांति जलमें, प्रमादसे भी नहीं घुसता । " स्त्रियोंकी रामलता, कामदेवके चढनेकी सीढी है " ऐसा समझते हुए लोगोंको, यह तत्व ज्ञान आवश्यकीय है-" संसार रूपी कैदमें लोहेके संकलकी बराबर स्त्रियोंकी रोमलता है " । जघन्य लोग, स्त्रीके विपुल जघनको भजते हैं, मगर यह नहीं जानते-" यह जघन, संसार सिंधुका किनारा है"। स्त्रियोंकी जंघाके साथ अपनी जंघाको घसडता हुआ कामी जन, यह नहीं देखता कि " यह जंघा, सचमुच पुण्य पेडको तोडने वाला प्रतीक्ष्ण कुठार है"। स्त्रीके पाँवोंसे हनाता हुआ पुरुष, अपनी आत्माको धन्य समझता है, पर यह नहीं समझता-" मैं स्त्रीके पांवोंसे हनाता हुआ सचमुच अधोगतिमें जा रहा हूँ"।
दर्शनसे, स्पर्शनसे, और आलिंगनसे, स्त्री जाति, शम जी. वितको हननेवाली, है, इसलिये उग्रविषसे भरी हुई सांपनीकी तरह वह, विवेकवंतोंको, काबिल परित्याग करनेके है । चन्द्रकी रेखाकी तरह टेढी, सन्ध्याकी तरह क्षण रागवाली, नदीकी तरह नीच गति वाली, वनिता, (औरत) विरक्तोंके हृदयों में प्रवेश नहीं पा सकती । मदन के आवेगमें अंधी बनी हुई स्त्री, न, प्रतिष्ठाको देखती
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