SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 127
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११० धर्माशेक्षा देखते । स्त्रियोंके अधर ( नीचेका होठ ) को, रतिका कुंड समझ कर कामी लोग पीते हैं, मगर इस बातका खयाल नहीं होता कि काल पिशाच, दिनरात हमारा आयु पीता रहता है । कामी जन, औरतोंके दांतोंको, कुंद पुष्पके भाई समझते हैं, पर यह विचार नहीं आता कि जरा-राक्षसी हमारे दांतोंके तोडनेकी तय्यारीमें है । रागी लोग, स्त्रियोंके कानोंको कामदेवका दोला (हिंडोला) समझते हैं, पर कण्ठपर लगे हुए काल पाशको नहीं देखते । गँवार लोग, स्त्रियोंके मुख चन्द्रकी किरणोंका दर्शन बार बार करते हैं, मगर यमराजेकी तर्फ एक भी क्षण देखना नहीं होता । कामके पराधीन-कामवशी पुरुष, स्त्रीका कंठ पकडता है-स्त्रीके कंठका आलंबन करता है, पर कंठका अवलम्बन कर रहे हुए-आज कलमें चले जानेवाले प्राणोंको नहीं जानता। स्त्रियोंकी भुजलता ( हाथ वेल ) देख, मोही आदमी प्रसन्न होता है, पर यह नहीं सोचता-" यह भुज लता नहीं, किंतु मेरेको जकडनेकी मजबूत जंजीर ( संकल ) है । स्त्रीके हाथोंसे आलिं. गित हुआ पुरुष, रोमांच कंटकोंको जगा देता है, पर आश्चर्य तो यही है-"वे रोमांच कंटक, समर वृक्षके कंटकोंको नहीं स्मरण कराता । स्त्रियोंके, सुवर्ण कलशका अनुकरण करनेवाले, स्तन कलशोंको, आलिंगन करके-हस्तकमलमें पकड करके-उन्हींको, कोमल हाथसे मर्दन करता हुआ-नखोंसे दाबता हुआ-मूठीमें भरता हुआ-अंगुलीसे ठकठकाता हुआ-गालोसे स्पर्श करता हुआ, कामी जन, सुखसे सोता है, मगर उसवक्त उस मूर्खको नरककी भयंकर वेदनाएँ याद नहीं आतीं । काममें अंधे बनेहुए आदमीको सोचना चाहिए कि "गरम गरम तपे हुए खम्भेका आलिंगन करना अच्छा है, मगर नरकका द्वार भूत, रामा (रमणी) का जघन सेवना अच्छा नहीं, जो कि दुरंत, अतिकटुक, दारुण Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034803
Book TitleDharmshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherGulabchand Lallubhai Shah
Publication Year1915
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy