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धर्मशिक्षा यह नहीं विचारता कि " शरीरकी छायाका रूप लिया हुआकाल, मेरे पास हमेशा फिरता रहता है"।
इस संसार वृक्षका मुख्य बीज कामभोग है, वही मोक्षका परम दुश्मन है। उसे हटानेके लिये मनोभवनमें वैराग्य रसका प्रवाह सतत रखना अत्यावश्यक है । मन, अगर वैराग्य रंगसे तरंगित न हुआ, तो समझ लो ! दान तप वगैरहका प्रयास निष्फल है। समस्त कलाएँ पायीं, तो इससे क्या हुआ ? , उग्र तपस्याएँ की, इससेभी क्या हुआ ? , विश्व व्यापि-रजत सम्पदाका उदय जाग उठा, इससेभी क्या हुआ ? , यदि आत्मघटमें विवेक प्रदीपकी किरणें स्फुरित न हुई, अतः मनको पाक रखने के लिये विवेककी बडी आवश्यकता है, विवेकही धीरजका जन्म दाता है, और धीरजका यही प्रभाव है कि मनुष्य, अकृत्य कर्म तरफ एकदम नहीं कूद सकता।
कामी लोग, औरतोंके काले व कुटिल केशपाशकी तर्फ नजर लगाते हैं, मगर स्त्रीके संगसे-स्त्रीके आलिंगनसे पेदा होने वाली दुष्कर्म संततिको नहीं देखते । कामी जन, स्त्रियोंकी 5वद्वरी ( भौहवेल) का वर्णन करते हैं, पर यह नहीं जानते कि यह सचमुच मोक्ष मागके मुसाफिरोंके लिये सामने खडी रही हुईप्रबल अन्तरायभूत काली सांपनी है । रमणियोंके भंगुर स्वभाववाले नेत्र विक्षेप, देख, गँवार खुश होते हैं, परंतु यह नहीं जानते कि हमारा ही जीवन क्षणभंगुर है । कामिनिओंकी नाककी डांडीकी, लोग, तारीफ करते हैं कि यह कैसी सरल है ?, कैसी उन्नत है ?, परंतु यह खयाल आवेही कहांसे ? यह कामकी डांडी, हमारे कुलकी इज्जतको चूर्ण करनेवाला एक मुसल है । पुलहिनोंके कपोल (गाल ) में प्रतिबिम्बित हुए अपनेको, कामी जन, देख आनन्द पाते हैं, परन्तु संसार नदीके कीचडमें चिपकनेका कष्ट नहीं
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