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धर्मशिक्षा देवता तकभी सहायक बनते हैं, उनका यश स्फुरायमान होता है, उनके धर्मको उत्तेजन मिलती है, उनके पाप नष्ट होजाते हैं, और उनके लिये स्वर्ग व मोक्षकी सम्पदाएं दूर नहीं, जो पुण्यात्मा, शील रत्नको अखंडित पाला करते हैं।
निर्मल शील, कुल कलंकको हटा देता है, पाप कीचडकालोप करता है, सुकृत का पोषण करता है, प्रशंसा, इज्जतको फैलाता है, कहांतक कहें, देवता लोगोंको भी नमाता है, और कठिन उपद्रवोंको देशनिकाल देने पूर्वक स्वर्ग व मोक्षको लीलामात्रमें संपादन कराता है । शीलका प्रभाव इस कदर चमत्कारी है कि शीलवंत पुरुषके लिये, आग-पानी, सांप-पुष्पमाला, शेर-मृग, पर्वत-पत्थर, जहर-अमृत, विघ्न-उत्सव, शत्रु-मित्र, ममुद्रतालाव, और जंगल-घर, बनजाता है।
धन्य है उन महात्माओंको, जिन्होंने स्फुरायमान विवेक रूपी वज्रसे काम, राग, मोह वगैरह पहाडौंको चूर्ण बना दिया । धन्य है उन ऋषियोंको, जिन्होंने अपनी प्राण प्रियाको शाकिनी समझ छोड दी, और परम वल्लभ लक्ष्मी देवीका भी सांपनीकी तरह तिरस्कार करदिया, और तरह तरहकी रमणीयताओंसे पूर्ण-प्रासादको बिलकी तरह छोडदिया । वही महापुरुष है, जो, परनारीके मुँह देखने ही में अंधा है। सौन्दर्यका एक खजाना, कलाओं करके कलाधर समान, लावण्यकी तरंगिणी, पुष्ट और उंचे स्तनोंसे अलस गतिवाली-गजगामिनी, पाताल कन्याकी आकृतिवाली और नवीन यौवनकी झलकती किरणोंसे मनुष्यों के हृदयों पर आक्षेप करने वाली औरतका संग, जिनने छोडदिया, उन महा पुरुषोंके हृदयगोचरमें, हताशवना हुआ कामदेव, क्या अवकाश पा सकता है ? , नहीं। श्रृंगार रूपी पेडके लिये मेह समान, रसिक क्रीडाका प्रवाहमय, कामदेवका प्रियबन्धु, चतुर
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