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________________ १.६ धशिक्षा. वाले होते हैं। दीवारको साफ किये सिवाय, उसपर जो चित्र बनाया जाता है, उसीकी उपमा, ब्रह्मचर्यके विना मन्त्र, तन्त्र वगैरहकी उपासनाभी समझनी चाहिए। और व्रतोंका,-जीव, ईश्वर, पुण्य, पाप, परलोक, मोक्ष वगैरहको नहीं मानता हुआ नास्तिक, बराबर अनादर कर स. कता है, मगर ब्रह्मचर्यके विषयमें तो उसकी भी पूर्ण सम्मति है। नास्तिक लोग तकभी ब्रह्मचर्यका जब बडा सत्कार करते हैं तो फिर आस्तिकपनका अभिमान रखनेवाले महाशय, उसे अगर न पालें, तो कितना शर्मिन्दा पन ? | नास्तिक लोगभी, अपने शरीर, दिमाग, और मनोबलकी मजबूताई करनेके लिये अर्थात् अपनी अलकी किरणोंको प्रदीप्त करने के लिये, अपने शरीरको कलियुगका भीमसेन बनानेके लिये, और अपने दिमागसे बृहस्पति, और वाग्बलसे वाचस्पतिको भी परास्त करनेके लिये, ब्रह्मचर्य रूपी मुख्य प्राणकी पूर्ण रक्षा करते हैं-ब्रह्मचर्य-मन्त्रकी उ. त्तम उपासना करते हैं, तो अफसोस है कि आस्तिक हो के आस्तिकोंसे आस्तिक्य गुणका अब्बल रास्ता ब्रह्मचर्य न पाला जाय। उसने, जगत्में अकीर्तिका ढंढोरा पिटवाया, उसने, अपने गोत्रमें स्याहीकी कूची फेर दी, उसने, चारित्र धर्मको जलांजलि दे दी, उसने, गुणगण रूप बगीचेमें आग उठा दी, उसने सकल विपदाओंको, मिलनेके लिये संकेत दिया, और उसने मुक्ति मंदिर के द्वार मजबूत बंद करदिये, जिसने, त्रिलोकीका चिंतामणि भूत निर्मल शीलवत खंडित किया। उनकी, शेर, सांप, जल, आग वगैरहकी विपदाएं नष्ट होजाती हैं, उनका कल्याण वैभव, पुष्ट होता है, उनके कार्योंमें Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034803
Book TitleDharmshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherGulabchand Lallubhai Shah
Publication Year1915
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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