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धनिया रहोगे, तो भारत की प्रजा को कैसे बढासकोगे ? । देखा है इतिहासमें, पहले भारतभूमीमें कितनी बस्ती थी, और आज है कितनी ? । ऐसी ही दुष्ट आदत, अगर अपना पद मजबूत करेंगी, तो भारतवर्षमें आज जितनी आबादी है, उससे भी क्षीण होती हुई कितने हिस्सेमें जाके ठहरेगी, यह कहनेकी कोई जरूरत नहीं। जिसने अपना धर्म न पाला, अपने धर्मका संरक्षण न किया, वह आदमी, अपनेका रक्षण नहीं कर सकता । धर्मका रक्षण क्या है ? मानो ! अपने जीवन ही का रक्षण है-अपने जीवनका सुधार है। जिसने ब्रह्मचर्य-धर्मको धारण न किया, अपनी आत्मामें स्वदार संतोष रूपी अमृतको गोपन न कर रक्खा-अथवा तो परदारगमन रूपी विष (जहर ) का सेवन करना बन्द न किया, उसका, चारों ओरसे सौ मुंहका विनिपात (पडना) होता है। इसमें कोई संदेह नहीं।
पुरुष की तरह, स्त्री भी, बराबर धर्मके काबिल होनेसे, पर पुरुषका संग जरूर छोड दे । जभी तो, ऐश्वर्य करके कुबेरके समान, और रूप करके कामदेवके सरीखे, प्रति वासुदेव रावण जैसे पुरुषका तिरस्कार करके सीताने अपना शीलवत ऐसा तो अकलङ्क-निर्मल रक्खा, कि आजतक उस अबलाकी गुण श्लाघा जगत्में मशहूर है। दूसरी स्त्रियोंमें आसक्त हुए पुरुष और दूसरे पुरुषोंमें आसक्त हुई स्त्रियाँ, भव भवमें नपुंसक तिर्यञ्च, और बडे दुर्भाग्यवालो होती हैं । चारित्रका मुख्य प्राण
और परब्रह्मका अद्वितीय-असाधारण कारण-ब्रह्मचर्यको निष्कलङ्कः पालता हुआ पुरुष, देवताओंसेभी बराबर पूजाता है, इसमें कोई सन्देह नहीं । ब्रह्मचर्यके प्रभावसे लोग, दीर्घआयुवाले, सुसंस्थानवाले, मजबूत संघननवाले, और बडेही तेज तथा पराकम १४
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