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________________ १०४ धर्मशिक्षा. गन्धी मुँहोंसे चुम्बित किया गया, वेश्याका मुँह, किस शाणे आदमीके मुँहके चुम्बनमें आसकता है ? । उच्छिष्ट-जूठा भोजन खानेसे परहेज करना अगर लाजिम समझा जाता है, तो बडा ताज्जुब है कि गणिकेके जूठे मुँहके चुम्बनसे परहेज करना नहीं मुनासिब समझा जाता । वेश्याका नाम ही जब साधारण स्त्री है, तो यह पक्का समझो! कि वेश्या, किसीकी कदापि नहीं होनेवाली, वह तो सिर्फ द्रव्यकी दासी है। जिसके पास द्रव्य है, और वह यदि वेश्याके चरणों में गिरनेको आया, फिर पूछना ही क्या?, वह कोढी-महारोगी, और हजारों मरिकओंसे सेवाता हुआ ही क्यों न हो?, वेश्याके लिये तो दौलतरूपी लावण्यका पूर ही होगा, और इसीसे, वेश्या, उसे कामदेवकी तरह कृत्रिम, बाहरके-झूठे प्रेमसे-भरे नेत्रोंसे देखती है । मगर खयाल करें, वह कोढी-रोगी आदमी तो क्या ? , किंतु वास्तनमें खूब सूरत रूप-लावण्य-कान्ति वालाही आदमी क्यों न हो ? , जब वेश्याका पेट भरते हुए उसकी दौलत खतम हो जायगी, और वेश्याको मालूम पडेगा कि ' यह भीख मँगा हो गया' फिर देख लीजिए ? उस बेचारे कामी पु. रुषकी दशा, क्रूर स्वभाववाली गणिका, घरसे निकलते हुए उस पुरुषका कपडा तकभी खींच लेगी । वेश्याके मोहमें बावला बना आदमी, न देव, न गुरु, न बान्धवों, और न तो मित्रोंको मानता है। सच पूछिए तो गणिकाएँ, कूट कर्म करनेमें राक्षसिओंसेभी आगे निकलनेवाली हैं, और छल-प्रपञ्चोंमें,शाकिनियोंसे भी बढने वाली हैं, तथा चपलता स्वभावमें तो बिजलीकाभी अतिक्रमण करने वाली हैं। इस लिये जिसको धर्मकी गरज है, वह, अव्वल तो यह गुण जरूर हांसिल करे कि परस्त्री तथा साधारण स्त्रीका परित्याग करे । अपना वीर्य इधर उधर यदि वरसाते Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034803
Book TitleDharmshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherGulabchand Lallubhai Shah
Publication Year1915
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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