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वर्मशिक्षा. चाना, तथा वेश्याकी-तरह तरहकी मदन लीलोंको लात मारना, इत्यादि लोकोत्तर बहादुरी करनेवाला कोई हुआ है, तो यह मान स्थूलभद्रजीको घटता है, जो कि आगके कुंडमें गिरने पर भी तनिक भी न जले । काजलकी कोठरीमें रहने पर भी काला पनसे बच गये । यह काम जैसा तैसा नहीं, बहुतसे योगीजनोंसे भी नहीं हो सकनेवाला, यह, कामराजेके किलेके जीतनेका काम, जो स्थूलभद्रजीने कर दिया है और इसीसे जो, इनकी तारीफकी सडक पक्की बधाई गयी है, वह, वर्षोंके वर्ष करोडों वर्ष जाने पर भी क्या टूट सकती है ?, कभी नहीं । और ऐसे ही महर्षिओंसे तो भारतवर्ष, आध्यात्मिक विद्याकी तारीफ पर अब भी सबसे बढकर चढा है, यह सबको विदित है।
मानव कर्तव्योंमें आलादर्जेका कर्तव्य-ब्रह्मचर्य, जिस आदमीसे रुष्ट हो गया, उसका सर्वस्व, नष्ट हो गया । उसकी तकदीरसे देवता लोग रुष्ट हो जाते हैं, जो ब्रह्मचर्यसे रुष्ट हो जाता है । गृहस्थके जितने धर्मके कानून हैं, अर्थात् ये जो बारह व्रत गृहस्थोंके लिये बताये जाते हैं, वे सब, सिवाय ब्रह्मचर्य, नदीको उपमावाले हैं, और वे सब नदियां ब्रह्मचर्य रूपी समुद्र में शुका करती हैं।
यह तो पहले कहही चुके हैं कि सर्वथा ब्रह्मचर्य अगर न पाला जाय, तो अपनी स्त्री (एक क्यों?, अनेक ही क्यों न हों?) के साथ भोग करनेमें संतोष रखें, मगर परस्त्रीकी तरफ तो कदापि नजर न करें, इतनाही नहीं, बल्कि जिसका कोई स्वामी नहीं है, उस साधारण स्त्री-वेश्याके साथ भी गमन करते रुकें । जिस के मनमें कुछ, वचन-बोलनेमें कुछ, और करनेमें कुछ, ऐसी, चंचल द्रव्यकी दासी, वेश्या, एकान्त आपदाओंका जन्म देनेवाली है। मांस मिश्र, शराबकी बदबूसे भरा, और अनेक शुद्रोंके दु
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