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________________ धर्मशिक्षा. पुरोहितकी स्त्री कपिला, राजेकी रानी अभया और देव. दत्ता वेश्याके साथ, एकान्तमें समागम होने पर, इतना ही नहीं, बल्कि उनकी तरफसे बहुत बहुत करुणा पूर्वक प्रार्थनासे भोग करनेका आग्रह, तथा आखिरमें उनकी तरफसे प्रतिकूल उपद्रव भी होनेपर, जिसके शरीरका एक भी रोम न चला-न कम्पा न कामार्त हुआ, उस महात्मा शेठ सुदर्शन की क्या तारीफ करें ?, धन्य है इसके मात पिताको, जिन्होंने पहाडकी तरह धीर हृदयवाला, न्यायप्रिय ऐसा महात्मा प्रकट किया। गृहस्थ होके भी ऐसी पराकाष्ठा पर ब्रह्मचर्यको चढ़ा देना, यह छोटीसी बात नहीं। इसके हृदयङ्गम धर्म-वैराग्य-विवेकका ढेर कितना चमकता होगा, कि जिसके हृदयपर कामदेवके कुल शस्त्रोंका प्रहार पड़ने पर भी कुछ भी असर न पड़ा । अपनी मनोरमा स्त्री पर पूर्ण सं. तोषी, छः पुत्रोंका बाप शेठ सुदर्शन, ऐसी अद्भुत निश्चल मनो. वृत्तिसे किसके हृदयका आकर्षण नहीं करता है ? । महात्मा हो तो सचमुच ऐसा ही हो। धन्य हो! धन्य हो! विजय शेठ और विजया शेठानी को, जो कि दोनों-दम्पति, विवाह ही से, एक पलंगमे सोते सोते निर्मल-निष्कलंक ब्रह्मचर्य पाला करते थे। यह बात किसे चमकारमें नहीं डूबाती, कि नवोन तरुण-दमकती उम्र में स्त्री-पतिको, संसार भोगसे बिलकुल हट जाना, और ब्रह्मचर्य पालना । इसका मूल सारांश यह है कि छोटी उम्रमें विजया कुंवरीने एक साध्वीके पास कृष्णपक्षमें ब्रह्मचर्य पालनेका कसम लिया, जब विजयकुमार, एक मुनिराजके पास शुक्लपक्षमें ब्रह्मचर्यका नियम ले ही बैठा था । अव भवितव्यतावशात् उन दोनोंका परस्पर विवाह हुआ । विवाहित होके रातको पलंगपर ज्यों दोनों सो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034803
Book TitleDharmshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherGulabchand Lallubhai Shah
Publication Year1915
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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