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धर्मशिक्षा. मगर मनको समझानेके लिये पहले विवेककी बड़ी जरूरत है;मनको धीरे धीरे समझानेसे जरूर उन्माद शिथिल पड जाता है। यह प्रत्यक्ष अनुभव कर सकते हैं कि कामभोगकी सामग्री मौजूद रहते, अथवा पारदारिक कर्म करनेके प्रसङ्गपर, थोडे समयको, सद्विचार पूर्वक, प्रतीक्षा की जाय, तो धीरे धीरे मन ठंढा पडेहीगा, मगर, थोडे समय तक धीरज पाना बडा मुश्किल है, विषयान्ध आदमी, एक मिनिट तक स्थिर नहीं रह सकता, वह तो अपने दिमागके सत्वको तोडनेमें ही कमर कसे रहता है । उल्लू, दिनमें, और कौआ, रातको, अन्धा रहता है, पर कामो पुरुष, रातदिन, कामान्ध रहता है । उस आदमीने हाथमें आया चिंतामणि न सम्हाला, जिसने मनुष्यत्व पाके, कामभोगमें सारा जीवन बिताया।
गृहस्थ लोग, सर्वथा ब्रह्मचर्य न पालें, तो नहीं सही, मगर परदार गमन, कभी न करें। एक नहीं तो दो त्रिओंके साथ विवाह करो!, मगर परस्त्रीगमन कभी नहीं करना चाहिय । अपनी स्त्रीके साथ भी अत्यंत आसक्तिसे भोगविलास करना मना है, तो सर्व पापोंकी खानि, परस्त्रीके सेवनकी तो बात ही क्या करनी ?। अपने पतिको छोड, दूसरे पुरुषके साथ रमण करती हुई, क्षणिक चित्तवाली चञ्चल परस्त्रीमें कौन अक्लमंद विश्वास कर सकता है? परस्त्रीके साथ रमण करनेवाला मनुष्य, अव्वळ तो, उस स्त्रीके पति, और राजा वगैरहसे डरता रहता है, और, "इसने मुझे देख लिया, इसने मुझे जान लिया, इस लिये यह आ रहा है" इस प्रकार व्याकुल चित्तसे कंपता रहता है, अत:, प्राणका सन्देह करनेवाला, बडा, वैर-विरोधका कारण और इस लोक व परलोकसे विरुद्ध, परस्त्रीगमन, दूरसे वर्जना चाहिये । परस्त्रीगमन करनेवाले को, इस जन्ममें, सब द्रव्यका ह૧૩
लिये यह अक्सन मुझे देख लिार राजा वगैरहवाल
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