________________
धशिक्षा. ईश्वरी शक्ति है, इसे पाले हुए लोग, और दोषोंसे भरे हुए भी परमपदके द्वारकी कुंजी बडे मजेसे पालेते थे, यह, इतिहास दृष्टिसे सबोंको विदितही होगा।
___ जो विषय सुख, आपात मात्रमें, अर्थात् शुरू शुरूमें, रमणीय, आनंददायक मालूम पड़ने पर भी अन्तमें किंपाक फल. की तरह बडा भयङ्कर होता है, उसे कौन महात्मा, आदरमें ला सके ? । जिस मैथुनसे कम्प, बाम, परिश्रम, मूच्छो, भ्रम, ग्लानि, बलका क्षय, और क्षयरोग वगैरह बड़ी आपदाएँ जाग उठती है, यह मैथुन, धर्मात्माको पसन्द नहीं पडता । मैथुनके प्रसङ्गसे, स्त्रीके योनि यन्त्रमें पैदा हुए, बहुत सूक्ष्म जन्तुओंके ढेर, पीडाते हुए मरजाते हैं, यह, वात्स्यायन वगैरह काम शास्त्रकार भी जब मंजूर करते हैं, तब भी उसमें, जो अत्यासक्ति करनी है, वह साफ पुरुषपदसे नीचे उतरजाना है । स्त्रीके सम्भोगसे, जो पुरुष, अपने कामज्वरको शान्त करना चाहता है, वह गँवार, सचमुच घृत (घी) के होमसे आगको ठंढी करना चाहता है।
यह पक्का समझें कि भोग भोगनेसे कभी इच्छाकी वृप्ति होने वाली नहीं, जो मनुष्य भोगोंमें बावला बन जाता है, और अपने शरीर को भी नहीं गिनता, उसकी आयु कम हो जाती है, उसकी मौत शीघ्र होती है । हम नहीं समझते कि विषयभोगमें इतना क्या देखा, और क्या इतना मिलता होगा? कि उसमें लोग, अत्यासक्त हो के अपने जीवनपर कीचड फेंकते हैं। जिस वक्त मनमें कामका आवेग बढ जाय, उस वक्त बावला न बनके पांच ही मिनट तक यदि स्थिरता की जाय, तो फिर वह, आपही आप शान्त हो जायगा, और अपनेको, अपनेही उन्मादकी हंसी आवेगी, ऐसी ही स्थिरता करनेका अभ्यास अगर हो जाय, तो . जरूर कामका आवेग ढीला पड़ जाता है, इसमें कोई शक नहीं।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com