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पशिक्षा
वह प्रसाद, इन्द्रोंको भी देना मुश्किल है। मन्त्र, यन्त्र, तन्त्र सा. धनेकी प्रथम प्रस्तावना-प्रथम भूमिका यही ब्रह्मचर्य है। इसी ब्रह्मचर्यके अनुचर बने हुए लोग, त्रिलोकीके अग्रगण्य हो गये हैं।
यह पक्की बात है कि जिसका ब्रह्मचर्य धन लूटा गया, वह, अपने मनोरथोंकी सिद्धि करनेमें बहुत स्खलनाएँ पाता है। ब्रह्मचर्य व्रत रूपी एक ही चिन्तामणि, यदि प्राप्त हो जाय, तो फिर औरों के लिये कोई मुश्किली नहीं है । सूर्य के विना दिवस, चन्द्र के विना रात्रि, गन्ध के विना पुष्प, देवता के विना मन्दिर, पुत्र के विना घर, नेत्रों के बिना मुँह, कवित्व विना विद्या, निमक विना भोजन, पानी विना तालाव, नायक विना सैन्य, वृक्षों के विना जंगल, मनुष्य के विना घर, विद्या विना गहने, दातृत्व गुणके विना धनी और विना श्रोतगणके सभा, जैसे नहीं शोभती, वैसे ही आदमी भी ब्रह्मचर्यके विना नहीं शोभता । सब गुणोंका शिरोमणि, सब नियमोंका अफसर, सब धर्मोंका अधिपति, सब सुकृतोंका नायक, सब मन्त्रोंका मुकुट, सब तपोंका राजा, सब कष्टोंका अग्रेसर, सब क्रियाओंका मुख्य प्राण, सब विद्याओंका पिता, सब लक्ष्मीका खजाना, सब इज्जतका निधान, सब पुण्योंका ब्रह्मा, सब सुखोंका बीज, सब अभ्युदयोंका मेघ, सब देवताओंका वशीकरण, सब दुःखोंका घातक, सब पातकोंका पातक, सब इच्छाओंका पूरक, सब अनिष्टोंका चूरक, सब भोगोंका कारक, सव रोगोंका वारक, सब विघ्नोंका मारक, सब अशुभोंका हारक, सब शत्रुओंका छेदक, सब दुर्जनोंका भे. दक, सब चिन्ताओंका शोषक, सब आशाओंका पोषक, चतुर्दिगन्त विजयका मोषक, ज्यादह क्या कहें ?, त्रिलोकीका मालिक, तीन जगत्का साम्राज्य दाता, और तत्सब्रह्म-सनातन परमपदके द्वारकी भी कुंजी (ताली) रखनेवाला, ब्रह्मचर्य, साक्षात्
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