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________________ धर्माशिक्षा. फिर लक्ष्मीदेवी का कहना ही क्या ? लक्ष्मी देवी का दर्शन क्या, लक्ष्मीदेवी ही भारत प्रजा की गोदमें लेटती रहेगी। अब्रह्मचर्यरूपी घनघोर बादल यदि हट जाय, तो, भारत साम्राज्य रूपी सूर्यके सहस्त्र किरणोंके चारों तरफ प्रसरनेका पूछना ही क्या ?। अब्रह्मचर्य रूपी हिमका विध्वंस हो जाने पर, विवेक रूपी निर्मल जलके अभिषेककी निरन्तर धारासे, विद्या कमलवन, देखिये ! फिर कैसा पुनरुज्जीवित होता है, इतना ही क्यों ?, वह ब्रह्मचर्य रूपी भास्कर भी, अपने हजार किरणोंसे उस विद्या-कमलवनको नितान्त प्रफुल्लित-विकसित करनेमें प्रयत्नशील रहेगा। भारतकी सूखी दौलतकी नदीके खोदनेका ब्रह्मचर्य रूपी कुठार, सन्त महान्तों ही के पाससे मिल सकता है, वहीं जानेसे, वहीं प्रार्थना करनेसे, उनकी तरफ परमपूज्य बुद्धि रखनसे, वे सन्त लोग, उस कुठारको, कानोंके मार्गसे, उपदेश रूपी मान्त्रिक प्रयोगद्वारा धीरे धीरे प्रवेश कराते हैं । मुनिजनोंसे कानोंके मार्गसे पैठाता हुआ, वह कुठार, भीतर घुस करके एकदम दिमागकी भूमी पर अवस्थित रहता है, बस! इसी दिमाग रूपी हस्तकमलमें जब ब्रह्मचर्यकुठार स्थिर रहेगा, फिर देख लीजिये ! मजा, भारतकी सूखी दौलतकी नदी, उस कुठारके, दे दनादन, प्रहारसे ऐसी उत्तम खोदाई जायगी कि उसी दम, शनैः शनैः दौलतरूप जलका प्रवाह छुटेगा, और क्रम क्रमसे बढता हुआ द्रव्यका पूर, भारतमें इतना फैल जायगा, कि मानो :, भारतका स्थल-भूमी भी दू. सरा रत्नाकर, प्रतीत होने लगेगा। ये सब प्रभाव, ब्रह्मचर्य देवताके समझ, इसीका मन्त्र जपना पहिले परमावश्यक है । यह देवता, रुष्ट हुआ जो अनर्थ करता है, वह अनर्थ, भूत, पिशाच, राक्षस, यक्ष, यम वगैरह से भी नहीं हो सकता। यह देवता, तुष्ट हुआ जो प्रसाद करता है, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034803
Book TitleDharmshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherGulabchand Lallubhai Shah
Publication Year1915
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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