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________________ गृहस्थधर्म. ज्ञानी-मगर यह तो बताओ! कि पहले कैसे मालूम पड सके कि इतने ही उपदेशके ग्राहक होंगे?. वादी-सबको उपदेश देनेसे सब अगर ब्रह्मचारी हो जायँगे तो। ज्ञानी-हो जायँ तो हो जाने दो, अच्छा ही है, तुम इस बातकी चिंता काहेको करते हों?। वादी-सबको ब्रह्मचारी होने पर संसारका सत्यानाश हो जायगा, यही बड़ी भारी चिंता लग रही है। ज्ञानी-संसारका सत्तानाश होता हो, तो होने दो, इसमें फिजूल तुम चिंतासे क्यों मरते हों ? । वादी-संसारका नाश हो तो साथ साथ हमारा भी नाश हो ही ___ जाय, तो अपनेकी चिंता किसको न होवे ? । ज्ञानी-तुम्हारा नाश होगा, तो क्या तुम्हारी आत्माका भी नाश होगा ? हर्गिज नहीं। ब्रह्मचर्य-साधुवृत्ति पालनेसे, अगर सभी मोक्षमें चले जाय, संसारी जीव कोई भी न रहे, अर्थात् संसारमें कोई भी जीव न भटके, तो वहुत ही अच्छी बात है। सब जीव मोक्ष आनन्दमें अगर मग्न हो जाये तो इससे बढकर और क्या अच्छा चाहिये। सभी प्राणिओंके मोक्षमें जाने से, अगर संसार शून्य हो जाता हो, संसारका सत्तानाश हो जाता हो, तो भले हो जाय, होना ही चाहिये, विना, संसार शून्य हुए, सभी जीव परमानन्दी नहीं बन सकते, अतः सभी प्राणिओंको परमानन्दी होनेके लिये सं. सारका उच्छेद होना बहुत उमदा है, कल संसारका उच्छेद होता हो, तो आज ही क्यों न होता, मगर हो नहीं सकता, जब, सब जीव, भिन्न भिन्न प्रकृतिवाले हैं, तो सब धर्मात्मा हर्गिन नहीं बन सकते, मगर उपदेश तो सबको देना चाहिये, जैसे व्यापारी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034803
Book TitleDharmshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyayavijay
PublisherGulabchand Lallubhai Shah
Publication Year1915
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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